कविता
मसरूफियत मृत्युंजय
गुलेल सी लगती है घंटी पत्थर सी ठोस ध्वनि कानों को चीरती मीठी उद्घोषणा जब भी अपना नंबर मिलाता हूँ व्यस्त ही जाता है।
हिंदी समय में मृत्युंजय की रचनाएँ