अ+ अ-
|
किसको पता है क्या हो रहा है हर घंटे के उस ओर
कितनी बार सूरज उगा
वहाँ, पहाड़ के पीछे !
कितनी ही बार दूर उमड़ता चमकता बादल
बन गया सुनहरा गर्जन!
यह गुलाब विष था।
उस तलवार ने जन्म दिया।
मैंने फूलों के मैदान की कल्पना की थी
एक सड़क के खत्म होने पर,
और खुद को दलदल में धँसा पाया।
मैं मानव की महानता के बारे में सोच रहा था,
और मैंने खुद को परमात्मा पाया। |
|