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					तुमने करुणा दीमेरी परुषता को
 लय दिया मेरी कविता को
 कोरा आकाश दिया
 स्लेट सा
 मेरी दृष्टि को
 और खड़िया दी
 मेरी उँगलियों को
 स्लेट भरने के लिए
 
 तुमने सदियों की खामोश जतन से
 जमा किया
 अपना मधु-कोष दिया
 मेरे स्वाद को
 संगीत दिया मेरे एकांत को
 साँचा दिया मेरी अनगढ़ता को
 और चरित्र दिया मेरे साँचे को
 
 तुमने शिखर दिया
 मेरी साधना को
 एक खूँटी दी
 मेरे बिखराव को
 और बिखरकर स्वयं
 सीढ़ियाँ दी
 मेरे कदमों को
 
 तुमने
 घंटी दी मेरी प्रार्थना को
 शंख दिया मेरे उद्घोष को
 रंगोली दी मेरी कल्पना को
 और एक दिगंबर मूर्ति दी
 कल्पना के सीमांत को
 
 पुरुष की उसर जमीन को
 एक स्त्री की सारी हरियाली दी
 तुमने
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