hindisamay head


अ+ अ-

कविता

नदी से मिलना

अर्पण कुमार


इस पार मैं था
उस पार नदी थी
दोनों एक-दूसरे से मिलने को विह्वल
और प्रतीक्षारत

बीच में सड़क थी
कोलतार से
ढकी-पुती, खूब चिकनी
भागते जीवन का
तेज, हिंसक और
बदहवास ट्रैफिक
जारी था जिस पर
अनवरत, अनिमिष
दोनों के नियंत्रण से बाहर

कहने को
सड़क की चौड़ाई भर
रास्ता तय करना था
मगर वह फासला
सड़क की तरह लंबा
और कई जाने-अनजाने
पेचोखम से भरा था

 


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में अर्पण कुमार की रचनाएँ