अ+ अ-
|
ईश्वर एक लाठी है जिसके
सहारे अब तक चल रहे हैं पिता
मैं जानता हूँ कहाँ कहाँ दरक गई है
उनकी कमजोर लाठी
रात को जब सोते हैं पिता उनके
लाठी के अंदर चालते हैं घुन
वे उनकी नींद में चले जाते हैं
लाठी पिता का तीसरा पैर है
उन्होंने नहीं बदली यह लाठी
उसे तेल फुलेल लगा कर किया
है मजबूत
कोई विपत्ति आती है दन्न से तान
देते हैं लाठी
वे हमेशा यात्रा में ले जाते रहे साथ
और बमक कर कहते हैं
- क्या दुनिया में होगी किसी के पास
इतनी सुंदर मजबूत लाठी
पिता अब तक नही जान पाए कि ईश्वर
किस कोठ की लाठी है।
|
|