जाएउ नागमती नगसेनहि । ऊँच भाग ऊँचै दिन रैनहि॥
कवँलसेन पदमावति जाएउ । जानहुँ चंद धारति महँ आएउ॥
पंडित बहु बुधिावंत बोलाए । रासि बरग औ गरह गनाए॥
कहेन्हि बड़े दोउ राजा होहीं । ऐसे पूत होहिं सब तोही॥
नवौ खंड के राजन्ह जाहीं । औ किछु दुंद होइ दल माहीं॥
खोलि भँडारहि दान देवावा । दुखी सुखी करि आन बढ़ावा॥
जाचक लोग, गुनीजन आए । औ अनंद के बाज बधााए॥
बहु किछु पावा जोतिसिन्ह औ देइ चले असीस।
पुत्रा, कलत्रा, कुटुंब सब, जीयहिं, कोटि बरीस॥1॥
(1) जाएउ=उत्पन्न किया, जना। ऊँचे दिन रैनहि=दिन-रात में वैसा ही बढ़ता गया। दुंद=झगड़ा, लड़ाई।