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कविता

पदमावत

मलिक मुहम्मद जायसी

संपादन - रामचंद्र शुक्ल

अनुक्रम रत्नसेन-संतति खंड पीछे     आगे

जाएउ नागमती नगसेनहि । ऊँच भाग ऊँचै दिन रैनहि॥

कवँलसेन पदमावति जाएउ । जानहुँ चंद धारति महँ आएउ॥

पंडित बहु बुधिावंत बोलाए । रासि बरग औ गरह गनाए॥

कहेन्हि बड़े दोउ राजा होहीं । ऐसे पूत होहिं सब तोही॥

नवौ खंड के राजन्ह जाहीं । औ किछु दुंद होइ दल माहीं॥

खोलि भँडारहि दान देवावा । दुखी सुखी करि आन बढ़ावा॥

जाचक लोग, गुनीजन आए । औ अनंद के बाज बधााए॥

बहु किछु पावा जोतिसिन्ह औ देइ चले असीस।

पुत्रा, कलत्रा, कुटुंब सब, जीयहिं, कोटि बरीस॥1॥

(1) जाएउ=उत्पन्न किया, जना। ऊँचे दिन रैनहि=दिन-रात में वैसा ही बढ़ता गया। दुंद=झगड़ा, लड़ाई।



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