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कविता

पदमावत

मलिक मुहम्मद जायसी

संपादन - रामचंद्र शुक्ल

अनुक्रम गोरा-बादल-युध्द खंड पीछे     आगे

मतैं बैठि बादल औ गोरा । सो मत कीज परै नहिं भोरा॥

पुरुष न करहिं नारि मतिकाँची । जस नौशाबा कीन्ह न बाँची॥

परा हाथ इसकंदर बैरी । सो कित छोड़ि कै भई बँदेरी॥

सुबुधिा सौं ससा सिंघ कहँ मारा । कुबुधिा सिंघ कूऑं परि हारा॥

देवहि छरा आइ अस ऑंटी । सज्जन कंचन, दुर्जन माटी॥

कंचन जुरै भए दस खंडा । फूटि न मिलै काँच कर भंडा॥

जस तुरकन्ह राजा छर साजा । तस हम साजि छोड़ावहिं राजा॥

पुरुष तहाँ पै करै छर, जहँ बर किए न ऑंट।

जहाँ फूल तहँ फूल है, जहाँ काँट तहँ काँट॥1॥

सोरह सै चंडोल सँवारे । कुँवर सँजोइल कै बैठारे॥

पदमावति कर सजा बिवानू । बैठ लोहार न जानै भानू॥

रचि बिवान सो साजि सँवारा । चहुँ दिसि चँवर करहिं सब ढारा॥

साजि सबै चंडोल चलाए । सुरँग ओहार, मोति बहु लाए॥

भए सँग गोरा बादल बली । कहत चले पदमावति चली॥

हीरा रतन पदारथ झूलहिं । देखि बिवान देवता भूलहिं॥

सोरह सै सँग चलीं सहेली । कँवल न रहा, और को बेली?॥

राजहिं चलीं छोड़ावै, तहँ रानी होइ ओल।

तीस सहस तुरि खिंचीं सँग, सोरह सै चंडोल॥2॥

राजा बँदि जेंहि के सौंपना । गा गोरा तेहि पहँ अगमना॥

टका लाख दस दीन्ह ऍंकोरा । बिनती कीन्हि पायँ गहि गोरा॥

बिनवा बादसाह सौं जाई । अब रानी पदमावति आई॥

बिनती करै, आइ हौं दिल्ली । चितउर कै मोहिं स्यो है किल्ली॥

बिनती करै, जहाँ है पूँजी । सब भँडार कै मोहिं स्यो कूँजी॥

एक घरी जौ अज्ञा पावौं । राजहिं सौंपि मँदिर महँ आवौं॥

तब रखवार गए सुलतानी । देखि ऍंकोर भए जस पानी॥

लीन्ह ऍंकोर हाथ जेहि, जीउ दीन्ह तेहि हाथ।

जहाँ चलावै तहँ चलै, फेरे फिरै न माथ॥3॥

लोभ पाप कै नदी ऍंकोरा । सत न रहै हाथ जौ बोरा॥

जहँ ऍंकोर तहँ नीक न राजू । ठाकुर केर बिनासै काजू॥

भा जिउ घिउ रखवारन्ह केरा । दरब लोभ चंडोल न हेरा॥

जाइ साह आगे सिर नावा । ए जगसूर! चाँद चलि आवा॥

जावत हैं सब नखत तराईं । सोरह सैं चँडोल सो आईं॥

चितउर जेति राज कै पूँजी । लेइ सो आइ पदमावति कूँजी॥

बिनती करै जोरि कर खरी । लेइ सौंपौं राजा एक घरी॥

इहाँ उहाँ कर स्वामी! दुऔ जगत मोहिं आस।

पहिले दरस देखावहु, तौ पठवहु कबिलास॥4॥

आज्ञा भई, जाइ एक घरी । छूँछि जो घरी फेरि बिधिा भरी॥

चलि बिवान राजा पहँआवा । सँग चंडोल जगत सब छावा॥

पदमावति के भेस लोहारू । निकसि काटि बँदि कीन्ह जोहारू॥

उठा कोपि जस छूटा राजा । चढ़ा तुरंग सिंघ अस गाजा॥

गोरा बादल खाँड़ै काढ़े । निकसि कुँवर चढ़ि चढ़ि भए ठाढ़े॥

तीख तुरग गगन सिर लागा । केहुँ जुगुति करि टेकी बागा॥

जो जिउ ऊपर खड़ग सँभारा । मरनहार सो सहसन्ह मारा॥

भई पुकार साह सौं, ससि औ नखत सो नाहिं।

छरकै गहन गरासा, गहन गरासे जाहिं॥5॥

लेइ राजा चितउर कहँ चले । छूटेउ सिंघ मिरिग खलभले॥

चढ़ा साहि चढ़ि लागि गोहारी । कटक असूझ परी जग कारी॥

फिरि गोरा बादल सौं कहा । गहन छूटि पुनि चाहै गहा॥

चहुँ दिसि आवै लोपत भानू । अब इहै गोइ इहै मैदानू॥

तुइ अब राजहि लेइ चलु गोरा । हौं अब उलटि जुरौं भा जोरा॥

वह चौगान तुरुक कस खेला । होइ खेलार रन जुरौं अकेला॥

तौ पावौं बादल अस नाऊँ । जो मैदान गोइ लेइ जाऊँ॥

आजु खड़ग चौगान गहि, करौं सीस रिपु गोइ।

खेलौं सौंह साह सौं, हाल जगत महँ होइ॥6॥

तब अगमन होइ गोरामिला । तुइ राजहि लेइ चलु, बादला॥

पिता मरै जो सँकरे साथा । मीचु न देइ पूत के माथा॥

मैं अब आउ भरी औ भूँजी । का पछिताव आउ जौ पूजी?॥

बहुतन्ह मारि मरौं जौ जूझी । तुम जिनि रोयहु तौ मन बूझी॥

कुँवर सहस सँग गोरालीन्हे । और बीर बादल सँग कीन्हे॥

गोरहि समदि मेघ अस गाजा । चला लिए आगे करि राजा॥

गोरा उलटि खेत भा ठाड़ा । पुरुष देखि चाव मन बाढ़ा॥

आव कटक सुलतानी, गगन छपा मसि माँझ।

परति आव जग कारी, होत आव दिन साँझ॥7॥

होइ मैदान परी अब गोई । खेल हार दहुँ काकरि होई॥

जोबन तुरी चढ़ी जो रानी । चली जीति यह खेल सयानी॥

कटि चौगान, गोइ कुच साजी । हिय मैदान चली लेइ बाजी॥

हाल सो करै गोइ लेइ बाढ़ा । कूरी दुवौ पैंज कै काढ़ा॥

भइँ पहार वै दूनौ कूरी । दिस्टि नियर, पहुँचत सुठि दूरी॥

ठाढ़ बान अस जानहु दोऊ । सालै हिथे न काढ़ै कोऊ॥

सालहिं हिय, न जाहि सहि ठाढ़े । सालहिं मरै चहै अनकाढ़े॥

मुहमद खेल प्रेम कर, गहिर कठिन चौगान।

सीस न दीजै गोइ जिमि हाल न होइ मैदान॥8॥

फिरि आगे गोरा तब हाँका । खेलौं, करौं आजु रन साका॥

हौं कहिए धाौलागिरि गोरा । टरौं न टारे, अंग न मोरा॥

सोहिल जैस गगन उपराहीं । मेघ घटा मोहि देखि बिलाहीं॥

सहसौ सीस सेस सम लेखौं । सहसौ नैन इंद्र सम देखौं॥

चारिउ भुजा चतुरभुज आजू । कंस न रहा और को साजू॥

हौं होइ भीम आजु रन गाजा । पाछे घालि डुँगवै राजा॥

होइ हनुवँत जमकातर ढाहौं । आजु स्वामि साँकरे निबाहौं॥

होइ नल नील आजु हौं, देहुँ समुद महँ मेंड़।

कटक साह जर टेकौं, होइ सुमेरु रन बेंड़॥9॥

ओनई षटा चहूँ दिसि आई । छूटहिं बान मेघ झरि लाई॥

डोलै नाहिं देब अस आदी । पहुँचै आइ तुरुक सब बादी॥

हाथन्ह गहे खडग हरद्वानी । चमकहिं सेल बीजु कै बानी॥

सोझ बान जस आवहिं गाजा । बासुकि डरै सीस जनु बाजा॥

नेजा उठे डरै मन इंदू । आइ न बाज जानि कै हिंदू॥

गोरै साथ लीन्ह सब साथी । जस मैमंत सूँड़ बिनु हाथी॥

सब मिलि पहिलि उठौनी कीन्ही । आवत आइ हाँक रउन दीन्ही॥

रुंड मुंड अब टूटहिं, स्यो बखतर और कूँड़।

तुरय होंहिं बिनु काँधो, हस्ति होहिं बिनु सूँड़॥10॥

ओनवत आइ सेन सुलतानी । जानहुँ परलय आव तुलानी॥

लोहे सेन सूझ सब कारी । तिल एक कहूँ न सूझ उधाारी॥

खड़ग फोलाद तुरुक सब काढ़े । धारे बीजु अस चमकहिं ठाढ़े॥

पीलवान गज पेले बाँके । जानहुँ काल करहिं दुइ फाँके॥

जनु जमकात करसि सब भवाँ । जिउ लेइ चहहिं सरग अपसवाँ॥

सेल सरप जनु चाहहिं डसा । लेहिं काढ़ि जिउ मुख विष बसा॥

तिन्ह सामुहँ गोरा रन कोपा । अंगद सरिस पाँव भुइँ रोपा॥

सुपुरुष भागि न जानै, भुइँ जौ फिरि फिरि लेइ।

सूर गहे दोऊ कर, स्वामि काज जिउ देइ॥11॥

भइ बगमेल, सेल घनघोरा । औ गज पेल, अकेल सो गोरा॥

सहस कुँवर सहसौ सत बाँधाा । भार पहार जूझ कर काँधाा॥

लगे मरै गोरा कै आगे । बाग न मोर घाव मुख लागे॥

जैस पतंग आगि धाँसि लेई । एक मुवै, दूसर जिउ देई॥

टूटहिं सीस, अधार धार मारै । लोटहिं कंधाहिं कंधा निरारै॥

कोई परहिं रुहिर होइ राते । कोई घायल घूमहिं माते॥

कोइ खूरखेह गए भरि भोगी । भसम चढ़ाइ परे होइ जोगी॥

धारी एक भारत भा, भा असवारन्ह मेल।

जुझि कुँवर सब निबरे, गोरा रहा अकेल॥12॥

गोरै देख साथि सब जूझा । आपन काल नियर भा, बूझा॥

कोपि सिंघ सामुहँ रन मेला । लाखन्ह सौं नहिं मरै अकेला॥

लेइ हाँकि हस्तिन्ह कै ठटा । जैसे पवन बिदारै घटा॥

जेहि सिर देइ कोपि करवारू । स्यो घोड़े टूटै असवारू॥

लोटहिं सीस कबंधा निनारे । माठ मजीठ जनहुँ रन ढारे॥

खेलि फाग सेंदुर छिरकावा । चाँचरि खेलि आगि जनु लावा॥

हस्ती घोड़ धाइ जो धाूका । ताहि कीन्ह सो रुहिर भभूका॥

भइ अज्ञा सुलतानी, बेगि करहु एहि हाथ।

रतन जोत है आगे, लिये पदारधा साथ॥13॥

सबै कटक मिलि गोरहि छेका । गूँजत सिंघ जाइ नहिं टेका॥

जेहि दिसिउठै सोइ जनु खावा । पलटि सिंघ तेहि ठावँ न आवा॥

तुरुक बोलावहिं, बोलै बाहाँ । गोरै मीचु धारी जिउ माहाँ॥

मुए पुनि जूझिजाज, जगदेऊ । जियत न रहा जगत महँ केऊ॥

जिनि जानहु गोरा सो अकेला । सिंघ के मोंछ हाथ को मेला?॥

सिंघ जियत नहिं आपु धारावा । मुए पाछ कोई घिसियावा॥

करै सिंघ मुख सौहहिं दीठी । जौ लगि जियै देइ नहिं पीठी॥

रतनसेन जो बाँधाा, मसि गोरा के गात।

जौ लगि रुधिार न धाोवौं, तौ लगि होइ न रात॥14॥

सरजा बीर सिंह चढ़ि गाजा । आइ सौंह गोरा सौं बाजा॥

पहलबान सो बखाना बली । मदद मीर हमजा औ अली॥

लँधाउर धारा देव जस आदी । और को बर बाँधौ, को बादी?॥

मदद अयूब सोस चढ़ि कोपे । महामाल जेइ नावँ अलोपे॥

औ ताया सालार सो आए । जेइ कौरव पंडव पिंड पाए॥

पहुँचा आइ सिंघ असवारू । जहाँ सिंघ गोरा बरियारू॥

मारेसि साँग पेट महँ धाँसी । काढ़ेसि हुमुकि ऑंति भुइँ खसी॥

भाँट कहा, धानि गोरा! तू भा रावन राव।

ऑंति समेटि बाँधिा कै, तुरय देत है पाव॥15॥

कहेसि अंत अब भा भुइँ परना । अंत न खसे खेह सिर भरना॥

कहि कै गरजिसिंघ अस्र धाावा । सरजा सारदूल पहँ आवा॥

सरजै लीन्ह साँग पर धााऊ । परा खड़ग जनु परा निहाऊ॥

बज्र क साँग, बज्र कैडाँड़ा । उठा आगि तस बाजा खाँड़ा॥

जानहु बज्र बज्र सौं बाजा । सबही कहा परी अब गाजा॥

दूसर खड़ग कंधा पर दीन्हा । सरजै ओहि ओड़न पर लीन्हा॥

तीसर खड़ग कूँड़ पर लावा । काँधा गुरुज हुत, घाव न आवा॥

तस मारा हठि गोरै, उठी बज्र कै आगि।

कोइ नियरे नहिं आवै, सिंघ सदूरहि लागि॥16॥

तब सरजा कोपा बरिबंडा । जनहु सदूर केर भुजदंडा॥

कोपि गरजि मारेसि तस बाजा । जानहु परी टूटि सिर गाजा॥

ठाँठर टूट, फूट सिर तासू । स्यो सुमेरु जनु टूट अकासू॥

धामकि उठा सब सरग पतारू । फिरि गइ दीठि, फिरा संसारू॥

भइ परलय अस सबही जाना । काढ़ा खड़ग सरग नियराना॥

तस मारेसि स्यो घोड़ै काटा । धारती फाटि, सेस फन फाटा॥

जौ अति सिंह बरी होइ आई । सारदूल सौं कौंनि बड़ाई?॥

गोरा परा खेत महँ, सुर पहुँचावा पान।

बादल लेइगा राजा, लेइ चितउर नियरान॥17॥

(1) मतैं=सलाह करते हैं। कीज=कीजिए। नौशाबा=सिकंदरनामा के अनुसार एक रानी जिसके यहाँ सिकंदर पहले दूत बनकर गया था। उसने सिकंदर को पहचानकर भी छोड़ दिया। पीछे सिकंदर ने उसे अपना अधाीन मित्रा बनाया और उसने बड़ी धाूमधााम से सिकंदर की दावत की। देवहि छरा=राजा को उसने (अलाउद्दीन ने) छला। आइ अस ऑंटी=इस प्रकार अंटी पर चढ़कर अर्थात् कब्जे में आकर भी। भंडा=भाँड़ा, बरतन। न ऑंट=नहीं पार पा सकते।

(2) चंडोल=पालकी। कुँवर=राजपूत सरदार। सजोइल=हथियारों से तैयार। बैठ लोहार...भानू=पदमावती के लिए जो पालकी बनी थी, उसके भीतर एक लुहार बैठा; इस बात का सूर्य को भी पता न लगा। ओहार=पालकी ढाँकने का परदा। कँवल...बेली=जब पदमावती ही नहीं रही, तब और सखियों का क्या? ओल होइ=ओल होकर, इस शर्त पर बादशाह के यहाँ रहने जाकर कि राजा छोड़ दिए जाएँ (कोई व्यक्ति जमानत के तौर पर यदि रख लिया जाता है तो उसे ओल कहते हैं)। तुरि=घोड़ियाँ।

(3) सौंपना=देखरेख में, सुपुर्दगी में। अगमना=आगे, पहले। ऍंकोर=भेंट, घूस, रिश्वत। स्यो=साथ, पास। किल्ली=कुंजी। पानी भए=नरम हो गए। हाथ जेहि=जिसके हाथ से।

(4) घिउ भा=पिघलकर नरम हो गया। न हेरा=तलाशी नहीं ली, जाँच नहीं की। इहाँ-उहाँ कर स्वामी=मेरा पति राजा। कबिलास=स्वर्ग, यहाँ शाही महल।

(5) छूँछि भरी=जो घड़ा खाली था ईश्वर ने फिर भरा, अर्थात् अच्छी घड़ी फिर पलटी। जस=जैसे ही। जिउ ऊपर=प्राण रक्षा के लिए। छर कै गहन...जाहिं=जिनपर छल से ग्रहण लगाया था वे ग्रहण लगाकर जाते हैं।

(6) कारी=कालिमा, अंधाकार। फिरि=लौटकर, पीछे ताककर। गोइ गोय, गेंद। जोरा=खेल का जोड़ा या प्रतिद्वंद्वी। गोइ लेइ जाऊँ=बल्ले से गेंद निकाल ले जाऊँ। सीस रिपु=शत्राु के सिर पर। चौगान=गेंद मारने का डंडा। हाल=कंप, हलचल।

(7) अगमन=आगे। सँकरे साथ=संकट की स्थिति में। समदि=विदा लेकर। पूरुष=योध्दा। मसि=अंधाकार।

(8) गोई=गेंद। खेल=खेल में। काकरि=किसकी। हाल करै=हलचल मचावे, मैदान मारे। कूरी=धाुस या टीला जिसे गेंद को लाँघना पड़ता है। पैज=प्रतिज्ञा। अनकाढ़े=बिना निकाले।

(9) हाँका=ललकारा। गोरा=(क) गोरा सामंत, (ख) श्वेत। सोहिल=सुहेल, अगस्त्य तारा। डुँगवै=टीला या धाुस्स। पीछे घालि...राजा=रत्नसेन को पहाड़ या धाुस्स के पीछे रखकर। साँकरे=संकट में। निबाहौं=निस्तार करूँ। बेंड=बेंडा, आड़ा।

(10) देव=दैत्य। आदी=बिलकुल, पूरा। बादी=शत्राु। हरद्वानी=हरद्वान की तलवार प्रसिध्द थी। बानी=कांति, चमक। गाजा=वज्र। इंदू=इंद्र। आइ न बाज... हिंदू=कहीं हिंदू जानकर मुझपर न पड़े। गोरै=गोरा ने। उठौनी=पहला धाावा। स्यो=साथ। कूँड=लोहे की टोपी जो लड़ाई में पहनी जाती है।

(11) ओनवत=झुकती और उमड़ती हुई। लोह=लोहे से। सूझ=दिखाई पड़ती है। फौलाद=फौलाद। करहिं दुइ फाँके=चीरना चाहते हैं। फाँके=टुकड़े। जमकात=यम का खाँड़ा, एक प्रकार का खाँड़ा। भवाँ करहिं=घूमते हैं। अपसवाँ चहहिं=चल देना चाहते हैं। सेल=बरछे। सरप=साँप। भुइँ लेइ=गिर पड़े। सूर=शूल, भाला।

(12) बगमेल=घोड़ों का बाग से बाग मिलाकर चलना, सवारों की पंक्ति का धाावा। अधार धार मारै=धाड़ या कबंधा अधार में वार करता है। कंधा=धाड़। निरारै=बिलकुल, यहाँ से वहाँ तक (अवधा)। भोगी=भोग-विलास करनेवाले सरदार थे। भारत=घोर युध्द। कुँवर=गोरा के साथी राजपूत। निबरे=समाप्त हुए।

(13) गोरै=गोरा ने। करवारू=करवाल, तलवार। स्यो=साथ। टूटै=कट जाता है। निनारे=अलग। धाूका=झुका। रुहिर=रुधिार से। भभूका=अंगारे सा लाल। एहि हाथ करहु=इसे पकड़ो।

(14) गूँजत=गरजता हुआ। टेका=पकड़ा। पलटि सिंह...आवा=जहाँ से आगे बढ़ता है वहाँ पीछे हटकर फिर नहीं आता। बोलै बाहाँ=वह मुँह से नहीं बोलता है। उसकी बाँहें खड़कती हैं। गोरै=गोरा ने। जाज, जगदेऊ=जाजा और जगदेव कोई ऐतिहासिक वीर जान पड़ते हैं। घिसियावा=घिसियावे, घसीटे। रतनसेन जो...गात=रतनसेन जो बाँधो गए इसका कलक गोरा के शरीर पर लगा हुआ है। रुहिर=रुधिार से। रात=लाल अर्थात् कलंकरहित।

(15) मीर हमजा=मीर हमजा मुहम्मद साहब के चाचा थे जिनकी वीरता की बहुत सी कल्पित कहानियाँ पीछे से जोड़ी गईं। लँधाउर=लंधाौर देब नामक एक कल्पित हिन्दू राजा जिसे मीर हमजा ने जीत कर अपना मित्रा बनाया था; मीर हमजा के दास्तान में यह बड़े डील-डौल का और बड़ा भारी वीर कहा गया है। मदद...अली=मानो इन सब वीरों की छाया उसके ऊपर थी। बर बाँधो=हठ या प्रतिज्ञा करके सामने आए। बादी=शत्राु। महामाल=कोई क्षत्रिाय राजा या वीर। जेइ=जिसने। सालार=शायद सालार मसऊद गाजी (गाजीमियाँ)। बरियारू=बलवान्। हुमुकि=जोर से। काढ़ेसि हुमुकि=सरजा ने जब भाला जोर से खींचा। खसी=गिरी।

(16) सरजै=सरजा ने। जनु परा निहाऊ=मानो निहाई पर पड़ा (अर्थात् साँग को न काट सका)। डाँड़ा=दंड या खंग। ओड़न=ढाल। कूँड़=लोहे का टोप। गुरुज=गुर्ज, गदा। काँधा गुरुज हुत=कंधो पर गुर्ज था (इससे)। लागि=मुठभेड़ या युध्द में।

(17) बरिबंडा=बलवान। सदूर=शार्दूल। तस बाजा=ऐसा आघात पड़ा। ठाँठर=ठठरी। फिरा संसारू=ऑंखों के सामने संसार न रह गया। स्यो=सहित। सुर पहुँचावा पान=देवताओं ने पान का बीड़ा अर्थात् स्वर्ग का निमंत्राण दिया।


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