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कविता

पदमावत

मलिक मुहम्मद जायसी

संपादन - रामचंद्र शुक्ल

अनुक्रम उपसंहार पीछे    

मैं एहिअरथ पंडितन्ह बूझा । कहा कि हम्ह किछु और न सूझा॥

चौदह भुवन जो तर उपराहीं । ते सब मानुष के घट माहीं॥

तन चितउर, मन राजा कीन्हा । हिय सिंघल, बुधिा पदमावति चीन्हा॥

गुरु सुआ जेइ पंथ देखावा । बिनु गुरु जगत को निरगुन पावा॥

नागमती यह दुनिया धांधाा । बाँचा सोइ न एहि चित बंधाा॥

राघव दूत सोइ सैतानू । माया अलाउदीं सुलतानू॥

प्रेम कथा एहि भाँति बिचारहु । बूझि लेहु जौ बूझै पारहु॥

तुरकी, अरबी, हिंदुई, भाषा जेती आहिं।

जेहि महँ मारग प्रेम कर, सबै सराहैं ताहि॥1॥

मुहमद कबि यह जोरि सुनावा । सुना सो पीर प्रेम कर पावा॥

जोरी लाइ रकत कै लेई । गाढ़ि प्रीति नयनन्ह जल भेई॥

औ मैं जानि गीत अस कीन्हा । मकु यह रहै जगत महँ चीन्हा॥

कहाँसो रतनसेन अब राजा? । कहाँ सुआ अस बुधिा उपराजा?॥

कहाँ अलाउदीन सुलतानू? । कहँ राघव जेइ कीन्ह बखानू?॥

कहँ सुरूप पदमावति रानी? । कोइ न रहा, जग रही कहानी॥

धानि सोईजस कीरति जासू । फूल मरै, पै मरै न बासू॥

केइ न जगत जस बेंचा, केइ न लीन्ह जस मोल?।

जो यह पढ़ै कहानी, हम्ह सँवरै दुइ बोल॥2॥

मुहमद बिरिधा बैस जोभई । जोबन हुत, जो अवस्था गई॥

बल जो गयउ कै खीन सरीरू । दिस्टि गई नैनहिं देइ नीरू॥

दसन गए कै पचा कपोला । बैन गए अनरुच देइ बोला॥

बुधिा जो गई देइ हिय बौराई । गरब गयउ तरहुँत सिर नाई॥

सरवन गए ऊँच जौ सुना । स्याही गई सीस भा धाुना॥

भँवर गए केसहि देइ भूवा । जोबन गयउ जीति लेइ जूवा॥

जौ लहि जीवन जोबन साथा । पुनि सो मीचु पराए हाथा॥

बिरिधा जो सीस डोलावै, सीस धाुनै तेहि रीस।

बूढ़ी आऊ होहु तुम्ह, केइ यह दीन्ह असीस?॥3॥

(1) एहि=इसका। पंडितन्ह=पंडितों से। कहा...सूझा=उन्होंने कहा, हमें तो सिवा इसके और कुछ नहीं सूझता है कि। उपराहीं=ऊपर। निरगुन=ब्रह्म, ईश्वर। (2) जोरी लाइ...भेई=इस कविता को मैंने रक्त की लेई लगाकर जोड़ा है और गाढ़ी प्रीति को ऑंसुओं से भिगो-भिगोकर गीला किया है। चीन्हा=चिद्द, निशान। उपराजा=उत्पन्न किया। अस बुधिा उपराजा=जिसने राजा रत्नसेन के मन में ऐसी बुध्दि उत्पन्न की। केइ न जगत जस बेचा=किसने इस संसार में थोड़े के लिए अपना यश नहीं खोया? अर्थात् बहुत से लोग ऐसे हैं। हम्ह सँवरै=हमें याद करेगा। दुइ बोल=दो शब्दों में, दो बार।

(3) पचा=पिचका हुआ। अनरुच=अरुचिकर। बौराई=बावलापन, जैसे, करत फिरत बौराई।-तुलसी। तरहुत=नीचे की ओर। धाुना=धाुनी रूई। भूवा=काँस के फूल, घुवा। जौ लहि हाथा=कवि कहता है कि जब तक जिन्दगी रहे जवानी के साथ रहे, फिर जब दूसरे का आश्रित होना पड़े तब तो मरना ही अच्छा है। रीस=रिस या क्रोधा से। केइ...असीस=किसने व्यर्थ ऐसा आशीर्वाद दिया।


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