hindisamay head


अ+ अ-

कविता

गुठली

स्वप्निल श्रीवास्तव


यह बेकार की पड़ी हुई चीज नहीं है
मिट्टी पानी मिलते ही इसके अंदर से
उगने लगेगा एक पौधा
धूप पाकर होगा छतनार

इसके अंदर सोया हुआ है
एक वृक्ष
इसके भीतर फलों का खजाना
छिपा हुआ है

फल खाकर जिसने भी फेंकी होगी
यह गुठली उसे यह पता न होगा
कि वह अपनी जिंदगी से कितनी जरूरी चीज
फेंक रहा है

यह गुठली नही क्रांतिबीज है
जिसमें वृक्षों की अनेकानेक संततियाँ
जन्म लेने के लिए बेचैन हैं

इसके भीतर
वृक्षों की दुनिया को कोलाहल से भरनेवाले
परिंदे छिपे हुए हुए हैं

 


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में स्वप्निल श्रीवास्तव की रचनाएँ