hindisamay head


अ+ अ-

कविता

गमछा

स्वप्निल श्रीवास्तव


फसलें कट चुकी हैं
किसी मजूर का पसीने से
तरबतर गमछा यहाँ
छूटा हुआ है

उसका लड़का ढूँढ़ते हुए
यहाँ आएगा
पसीने की गंध से
पहचान जाएगा कि यह
उसके बाप का गमछा है

 


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में स्वप्निल श्रीवास्तव की रचनाएँ