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कविता

ईश्वर बाबू

स्वप्निल श्रीवास्तव


यही कहीं रहते थे ईश्वर बाबू
इस घर के आसपास
सड़क के करीब
सड़क और जिंदगी के शोर में
बराबर चौकन्ने

यही सड़क पर बचाया था उन्होंने
उस आदमी को जिसे
गुंडे छूरा भोंक कर
मार डालना चाहते थे उस रात

आदमी बच गया
लेकिन दूसरे दिन शहर के सीमांत पर
पाई गई लाश ईश्वर बाबू की

इस तरह उस दिन
एक अच्छे नागरिक का फर्ज
पूरा किया ईश्वर बाबू ने
एक अच्छी सरकार का फर्ज पूरा किया सरकार ने
उनके परिवार को उचित मुआवजा देकर

ईश्वर नहीं मरा था
मर गए थे ईश्वर बाबू
इसलिए कोई हंगामा नही हुआ

 


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