hindisamay head


अ+ अ-

कविता

बस स्टैंड पर एक औरत

स्वप्निल श्रीवास्तव


बस स्टैंड पर खड़ी है
बस का इंतजार करते हुए एक औरत
वह बार बार देखती है घड़ी
जिसमें सरक रहा है समय

उसे घर पहुँचने की जल्दी है
औरत की गोद में एक बच्चा है
किलकारी मार कर हँसता हुआ
अपनी माँ की बचैनी से बेखबर

भीड़ और शोर के बीच खड़ी हुई औरत
सड़क पर देखती हुई हर आहट पर
चौकन्नी है
देर हो जाती है
औरत के चेहरे पर आ जाता है तनाव

वह चारों ओर देखते खोजते इंतजार
करते ऊब गई है

वह सब कुछ देखती है लेकिन
देख नही पाती अपने हँसते हुए बच्चे को

 


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में स्वप्निल श्रीवास्तव की रचनाएँ