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कविता

सिर पर हरी घास का गट्ठर लिए

स्वप्निल श्रीवास्तव


सिर पर हरी घास का गट्ठर लिए स्त्रियाँ
सड़क से गुजर रही हैं

यह व्यस्त सड़क है
एक मिनट में यहाँ से दर्जनों गाड़ियाँ
गुजर जाती हैं

उनके शोर के बीच मंथर मंथर
चलती हैं स्त्रियाँ
सिर पर हरी घास का पहाड़ लिए
वे उड़ रही हैं

उनका इधर से आना अच्छा
लगता है
वे हमारे दिनों को ताजा और हरा
बनाए हुए हैं

गर्मी हो या बारिश वे इधर से
गुजरती हैं

उनकी भीगी देह की एक एक धारियाँ
दिखाई देती है

कमर में बजती है करधन

जंगल से वे घास और प्रकृति का
खिलदड़ापन लाती हैं

वे मानसून लाती है और अपने टोले में
बरसने के लिए छोड़ देती हैं

शोख और चंचल इन स्त्रियों को जंगल की
तरफ से आते हुए देख यह अनुभव होता है
कि जैसे वे किसी नृत्य उत्सव से
लौट रही हों थकी हुई फिर भी थोड़ी सी
अलमस्त

 


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