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कविता

आदमी का मारा जाना

स्वप्निल श्रीवास्तव


बहुत आम हो गया है
हमारा मारा जाना
बहुत अस्वाभाविक होती जा रही है
हमारी मृत्यु

हम मार दिए जाते है दुर्घटनाओं में
आँकड़ों में अखबारों में

हमें रेस का घोड़ा बनाकर
दौड़ाया जाता है और
हार जाने पर मार दिया
जाता है

हम जितना बचने की कोशिश
करते हैं उतना ही हमें
मार दिया जाता है

हमें इसलिए मार दिया जाता है
क्योंकि हम चुप रहते हैं

 


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