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कविता

मैं किसी की नयन-गंगा में बह गया हूँ

ब्रजराज तिवारी ‘अधीर’


मैं किसी की नयन-गंगा में बह गया हूँ।
आज ओ माझी! मुझे दे दो किनारा।

एक अनजानी किरन सहला गयो,
एक पहचानी लहर शरमा गयो,
किसी कच्चे वृक्ष-सा,
मैं अचानक आँधियों में ढह गया हूँ।

आज ओ माझी! मुझे दे दो सहारा।
बिजलियों ने दूर से पथ मुझे दिखला दिया,
और बादल ने कहीं भटका दिया,
स्वप्न सब तृन की तरह टूटे,
मगर मैं अभी कुछ टूटने को रह गया हूँ।
आज ओ माझी! मुझे दे दो सहारा।

एक शीशा सामने से छल गया,
सूर्य मेरा दोपहर में ढल गया,
चाँदनी-सी हँसी सब ने बाँट ली
और सारा दर्द मैं ही सह गया हूँ
आज ओ माझी! मुझे दे दो सहारा।

 


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