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कविता

कपोल कल्पना

आरेला लासेक्क


मेरी रूह गमगीन,
अनूठी, रोमानी है,
मैं,
संभवतया मैं ग्रीस में एक नाव पर सवार हो
बही चली आई सैतोरिनि में,
एक खच्चर की पीठ पर लदकर
समंदर से सीधे बाहर
जैतून के वृक्ष की शाखाओं पर
लटकाती हूँ अपनी रोशनी
और सफेदी पुते घर के भीतर
प्रेम रचाती हूँ दिव्य मछुआरे
या पद च्युत पादरी से।

 

अनुवाद - अर्चिता दास & मिता दास

संपादन - रति सक्सेना

 


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