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कविता

जुर्म

आरेला लासेक्क


दीवार से
कपाट टकराए
वह घर के भीतर
अपने कमरे में अकेली,
मृत देह को देखती हुई
उसके साथ, अकेली,
उसका खौफ
और खिलौने,
फर्श पर बिखरे हुए।
उसका खयाल है कि वह
पहरा देगी
भोर उगने तक
फिर कब्र खोदेगी
जिसमे दफ्न करना है
उस छिपकली को
जिसे उसने मारा है।


अनुवाद - अर्चिता दास & मिता दास

संपादन - रति सक्सेना

 


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