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कविता

नई शुरुआत

अरुण देव


अब की अच्छी शुरुआत की जाए
घमंड से ऐंठन की जगह
नम्रता से सीधा रहा जाए पड़ोसियों पर हँसने से पहले
उनके दुख में रो लिया जाए

एक दिन घर से निकलना हो और
बिना दाग के वापस लौटा जाए
आत्मा में चढ़ने से पहले मैल
हँसी की तेज धार से उसे खुरच दिया जाए

एक दिन गली बुहारी जाए
नाली साफ किया जाए
पर उससे पहले मन के कपट आँसुओं से धुल लिए जाएँ

 


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