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कविता

उदास पानी

उपेंद्र कुमार

अनुक्रम

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बीसवीं शताब्दी की विमर्शवादी काव्य-हलचलों के बीच लिखी कुछ चुनी कविताएँ पाठकों और अध्येताओं के लिए प्रस्तुत हैं। इनके चयन में कई समर्थ कवियों के परामर्श का सहयोग मिला है। क्यों, कैसे ये कविताएँ चुन ली गई? इसका सीधा उत्तर यही है कि ये चुन ली गई। कविताओं को देखने का काम आँखों की बजाय भीतर से कोई दृष्टि करती है जिसे कभी हृदय और कभी मस्तिष्क कहा जाता है। उससे भी पुराने ज़माने में उसे ज़िगर से निकली हुई चीज़ माना जाता था। आज कहना कठिन है कि हृदय और मस्तिष्क का इसमें कितना हाथ है। हाथ है जरूर। वह कौन-सी दृष्टि का हाथ है? सहज में दूसरा उत्तर कठिन है। असहज ढंग से कहा जाएगा कि वह देखना अन्तर्दृष्टि से जुड़ा है। बड़े कवियों के पास यही अन्तर्दृष्टि होती है। चयन की सारी प्रक्रिया उन्हीं लोगों द्वारा सम्पन्न हुई है। मैं तो मात्र लेखक हूँ। मैं भी आपके साथ में कविताएँ पढ़ता हूँ तो खुद एक पाठक बन जाता हूँ। पढ़ते वक्त किसी दूसरे की कविता पढ़ने का अनुभव होता है। एक पाठक की तरह वे याद का हिस्सा बनने लगती हैं। उन तमाम सर्जकों के प्रति आभार सहित जिनसे सब कुछ पाया है। ऐसा पाना जिसे खोना कभी न होगा। -

 

उपेन्द्र कुमार                                                                   ‘अथर्वा’ 
                                                                        15, पार्क स्ट्रीट,
                                                                       नई दिल्ली-110001


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