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कविता

बात पर बात होता बात ओराते नइखे

मनोज भावुक


बात पर बात होता बात ओराते नइखे
कवनो दिक्कत के समाधान भेंटाते नइखे

भोर के आस में जे बूढ़ भइल, सोचत बा
मर गइल का बा सुरुज रात ई जाते नइखे

लोग सिखले बा बजावे के सिरिफ ताली का
सामने जुल्म के अब मुट्ठी बन्हाते नइखे

कान में खोंट भरल बा तबे तs केहू के
कवनो अलचार के आवाज सुनाते नइखे

ओद काठी बा, हवा तेज बा,किस्मत देखीं
तेल भरले बा, दिया-बाती बराते नइखे

मन के धृतराष्ट्र के आँखिन से सभे देखत बा
भीम असली ह कि लोहा के, चिन्हाते नइखे

बर्फ हs, भाप हs, पानी हs कि कुछुओ ना हs
जिंदगी का हवे, ई राज बुझाते नइखे

दफ्न बा दिल में तजुर्बा त बहुत, ए 'भावुक'
छंद के बंध में सब काहें समाते नइखे

 


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