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कविता

दर्द उबल के जब छलकेला ग़ज़ल कहेलें भावुक जी

मनोज भावुक


दर्द उबल के जब छलकेला ग़ज़ल कहेलें भावुक जी
जब-जब जे महसूस करेलें उहे लिखेलें भावुक जी

टुकड़ा-टुकड़ा, किस्त-किस्त में जीये-मुयेलें भावुक जी
जिनिगी फाटे रोज-रोज आ रोज सियेलें भावुक जी

अपना जाने बड़का-बड़का काम करेलें भावुक जी
चलनी में पानी बरिसन से रोज भरेलें भावुक जी

हिरनीला बउराइल मन भटकावे जाने कहाँ-कहाँ
गिरत-उठत अनजान सफर में चलत रहेलें भावुक जी

कुछुओ कर लीं, होई ऊहे, जवन लिखल बा किस्मत में
इहे सोच के अक्सर कुछुओ ना सोचेलें भावुक जी

आँच लगे जब कस के तब जाके पाके कच्चा घइला
अइसे दुख के दुपहरिया में जरत रहेंलें भावुक जी

पटना, दिल्ली, बंबे, लंदन अउर अफ्रीका याद आवे
जिनगी के बीतल पन्ना जब भी पलटेलें भावुक जी

जिक्र चले जब भी वसंत के हो जालें बेचैन बहुत
आँख मूँद के जाने का-का याद करेलें भावुक जी

 


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