hindisamay head


अ+ अ-

कविता

कोणार्क

गायत्रीबाला पंडा

अनुवाद - शंकरलाल पुरोहित


बिना हलचल हुए
वर्ष पर वर्ष
स्थिर मुद्रा में खड़े रहना ही
हमारी अभिनवता, कोई कहता।

हमारी नग्नता ही हमारा प्रतिवाद
और दूसरा स्वर जुड़ता।

उल्लास और आर्तनाद को माँग-माँग
पत्थर बन गए,
हेतु होते विस्मय का,
पथिक का, पर्यटक का।

प्राचुर्य और पश्चात्ताप में गढ़ा
एक कालखंड
क्या हो सकता है कोणार्क?

समय है निरुत्तर।


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में गायत्रीबाला पंडा की रचनाएँ