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तुम्हारे मादक नेत्रों की हाला
मुझे करती है गाफिल वह मधुशाला
तृप्त होने दो मुझे उन मदिरा के प्यालों से
या रीते प्यालों पर धर दो चुंबन अधरों से
होगी अगर तुम्हारे मादक नेत्रों की हाला
सच स्पर्श भी न होगा मदिरा का प्याला
आत्मा के गर्भ में जब जागती है प्यास
व्याकुल कर देती है प्रेम की आस
तुम्हारे आत्मिक प्रेम की ज्वाला में
होम है यह - विषमयी द्राक्ष दुहिता
गुलाबों का मैंने भेजा था गुलदस्ता
शपथ है श्वास की, गंध और गमक की
न जाने क्यों लौटा दिया तुमने !
पर उसमें अब भी आ रही है गंध
ताजे गुलाबों की ! ...नहीं ,,,
तुम्हारे श्वास की... प्रेम की !!!
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