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					उजाला ही है वहसब कह रहे हैं
 
 हाँ, वही तो उजाला है
 उसी की तरह जो दिखता है उजाला
 सब कह रहे हैं
 
 उजाले के नुकीले दाँतों में अटके हैं
 मांस के टुकड़े
 वह बाँहों में विकास की गठरी दबा के लाया है
 शासक की भाषा बोलता है
 सारे गाँव, सारी बस्ती, सारे बागान
 जा रहे हैं चूहों की तरह
 उसके पीछे-पीछे
 
 हाँ, यह वही उजाला है
 होंठों में दबाया है जिसने
 सिगरेट की तरह आदमी को
 
 अब जाके सुलग रहा है इनसान
 ऊपर उठता हुआ धुँआ
 क्या सभ्यता का है?
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