कविता
उकाब एल्फ्रेड टेनिसन अनुवाद - किशोर दिवसे
खुरदरी चट्टान को अपने क्रूर पंजों में थाम वीरान भूमि पर, तप्त सूरज के आयाम नीलाभ विश्व के वर्तुल, फिर भी नहीं आराम झुर्रियाँ भरा समुद्र रेंगता हैं नीचे तीक्ष्ण दृष्टि है उसकी, शिकार के पीछे तब झपटता है वह बिजली बनकर नीचे।
हिंदी समय में एल्फ्रेड टेनिसन की रचनाएँ