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कविता

हमारे इस असमय में

राकेश रंजन


दहशत और दरिंदगी से भरे
हमारे इस असमय में
हो सकता है
घर लौटते वक्त दिख जाएँ
फसल की तरह काटे गए
किसानों, खेतिहर मजदूरों के शव
या दिख जाएँ
बागों की तरह उजाड़े गए
सैकड़ों घर
जंगल-जैसे काटे गए
अनगिनत लोग ।

हो सकता है घर लौटूँ तो देखूँ
पिता की कटी गर्दन
भाई का छलनी-छलनी बदन
माँ की कटी छाती
चिरनिद्रा में लीन बहन निर्वसन
खून और खून और खून इधर-उधर ।

दहशत और दरिंदगी से भरे
हमारे इस असमय में हो सकता है...
हो सकता है मैं ही न लौट पाऊँ
अपने घर।

 


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