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कविता

सुअरवा !
राकेश रंजन


घिरा पिल्लुओं से, जोंकों से
असह बदबुओं के झोंकों से
थूथन पर गंदगी उठाए
करता पंक-विहार सुअरवा

पंक-अरगजा अंक लपेटे
पंक-अंक का अंतर मेटे
पंक-पाग सर पर थकियाए
बना पंक-सरदार सुअरवा

मैं भरमाता, विस्मित होता
सोच-सोचकर सुध-बुध खोता
तुमने ही जल-प्रलय में किया
धरती का उद्धार सुअरवा

तुमरी जै-जैकार सुअरवा
तुमको है घिक्कार सुअरवा !

 


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