कविता
रात की गाथा अरुण कमल
जैसे उतरने में एक पाँव पड़ा हो ऐसे मानो वहाँ होगी एक सीढ़ी और\ पर जो न थी ऐसे ही हाथ पीठ पर पड़ते लगा उसे और ऐसे ही सुबह हुई हाथ पीठ पर रक्खे-रक्खे।
हिंदी समय में अरुण कमल की रचनाएँ