जब उम्र कम थी काले थे केश और आभा थी पर मैं दुबला था बहुत फिर उम्र बढ़ी शरीर गोटाया आँखों को थाह मिली पर कहाँ कैसे निबहना आता न था अब जब उम्र हुई जानता हूँ दाँव-पेंच शास्त्र कुल पर साथ नहीं देह न थाह न आभा कभी कच्चा कभी डंभक कभी पुलपुल।
हिंदी समय में अरुण कमल की रचनाएँ