जिसने खो दी आँखें वह भी एक बार झाड़ता है अपनी किताबें बादल गरजते हैं उसके लिए भी जो सुन नहीं सकता जो चल नहीं सकता उसके सिरहाने भी रखा है एटलस जिससे कभी किसी ने साँस नहीं बदली उसे भी इंतजार है शाम का।
हिंदी समय में अरुण कमल की रचनाएँ