hindisamay head


अ+ अ-

कविता

जैसे

अरुण कमल


जैसे
मैं बहुत सारी आवाजें नहीं सुन पा रहा हूँ
चींटियों के शक्कर तोड़ने की आवाज
पंखुड़ी के एक एक कर खुलने की आवाज
गर्भ में जीवन बूँद गिरने की आवाज
अपने ही शरीर में कोशिकाएँ टूटने की आवाज

इस तेज बहुत तेज चलती पृथ्वी के अंधड़ में
जैसे मैं बहुत सारी आवाजें नहीं सुन रहा हूँ
वैसे ही तो होंगे वे लोग भी
जो सुन नहीं पाते गोली चलने की आवाज ताबड़तोड़
और पूछते हैं - कहाँ है पृथ्वी पर चीख ?

 


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में अरुण कमल की रचनाएँ