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कविता

उत्सव
अरुण कमल


देखो हत्यारों को मिलता राजपाट सम्मान
जिनके मुँह में कौर मांस का उनको मगही पान

प्राइवेट बंदूकों में अब है सरकारी गोली
गली-गली फगुआ गाती है हत्यारों की टोली
देखो घेरा बाँध खड़े हैं जमींदार की गुंडे
उनके कंधे हाथ धरे नेता बनिया मुँछ्मुंडे
गाँव-गाँव दौड़ाते घोड़े उड़ा रहे हैं धूर
नक्सल कह-कह काटे जाते संग्रामी मजदूर
दिन-दोपहर चलती है गोली रात कहीं पर धावा
धधक रहा है प्रांत समूचा ज्यों कुम्हार का आवा
हत्या हत्या केवल हत्या - हत्या का ही राज
अघा गए जो मांस चबाते फेंक रहे हैं गाज

प्रजातंत्र का महामहोत्सव छप्पन विध पकवान
जिनके मुँह में कौर मांस का उनको मगही पान।

 


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