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बाल साहित्य

पर्वत कहता

सोहनलाल द्विवेदी


पर्वत कहता
शीश उठाकर
तुम भी ऊँचे बन जाओ
सागर कहता है
लहराकर
मन में गहराई लाओ।

समझ रहे हो
क्या कहती है
उठ-उठ गिर गिर तरल तरंग
भर लो, भर लो
अपने मन में
मीठी-मीठी मृदुल उमंग।
धरती कहती-
धैर्य न छोड़ो
कितना ही हो सिर पर भार
नभ कहता है
फैलो इतना
ढक लो तुम सारा संसार

 


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