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कविता

मौसम-मौसम, शहर-शहर

राजकुमार कुंभज


मौसम-मौसम, शहर-शहर
शहर-शहर का मौसम-मौसम अलग-अलग है
अलग-अलग हैं छाते, अलग-अलग हैं छतें
अलग-अलग हैं दीवार, अलग-अलग हैं दीवारें
अलग-अलग हैं सूर्योदय और सूर्यास्त सभी अलग-अलग
है अलग-अलग, बहुत कुछ, बहुत कुछ, लेकिन
अलग-अलग नहीं है प्रेम
वे ही आँखें, वे ही भाषाएँ आँखों की
जो सबकी, जिन्हें समझते हैं सब ही
सब ही की भाषा आँखों की भाषा
समझें सब, बोलें सब, सुनें सब
गर मौसम-मौसम, शहर-शहर
तो होगा क्या, होगा क्या, जानो समझो
मौसम-मौसम, शहर-शहर।

 


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