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कविता

गांधी चौक पर आजकल

राजकुमार कुंभज


बीते दिन बहुत
लिखी नहीं गई कविता कोई एक
शायद भाषा और अनुभव की कमी हुई
संवेदनाओं की हुई क्षति अपार अथवा व्यापार हुआ कम अनुभूतियों का
सुझाया एक बाजारू स्त्री ने तभी एक दिन
कि एक चक्कर के चक्कर में ही डूबा है संसार सारा
तो एक चक्कर लगा लेना ठीक रहेगा क्या ?
गांधी चौक तक का चक्कर बुरा तो नहीं
गांधी चौक पर आजकल रहते हैं कौन ?
जानते नहीं क्या सब ?

 


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