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गहरी होती जा रही थी रात में
पार्टी दफ्तर भी होता जा रहा था श्मशान
और राजनीति के रसोइए भी
आहिस्ता-आहिस्ता लौट रहे थे घर
भूख की जगह भूख बरकरार थी
बहुत दिन हुए खाया-पकाया नहीं मुर्गा
इतनी गहरी रात में मिलेगा कहाँ ?
भूख पर गर्मा-गर्म बहस के बाद
मोची मोहल्ले की तरफ चलना ही ठीक रहेगा
वहाँ, न हिंदू रहते हैं, न मुसलमान
सिर्फ मुर्गे रहते हैं वहाँ
बीच-बहस और बहस बाद, सोचा सबने
और सबके लिए
जूते जहाँ सिले जाते हैं सबके नाप के
विद्रोह उठता है वहीं से पहले-पहल।
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