कोई जासूस है शायद जो खटखटा रहा है स्मृतियों का दरवाजा और फेंक रहा है रंग-बिरंगे सपनों के रंग जिंदगी के अजनबी मोड़ पर यदा-कदा जो छूट चुके हैं सदियों पहले मुक्ति की कामना का दीवाना-मस्ताना में मगर मैं मुक्त कहाँ स्मृतियों से ?
हिंदी समय में राजकुमार कुंभज की रचनाएँ