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कविता
पटरी-बाजार
राजकुमार कुंभज
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हिंदी समय में राजकुमार कुंभज की रचनाएँ
कविताएँ
अकस्मात नहीं है कुछ भी
आत्मा में दरअसल
एक ठहराव-सा असामान्य
और नहीं युगे-युगे अँधेरा
क्यों कहलाया तटस्थ मैं ?
कल की दुपहर में
कितने पास जीवन, कितने पास मृत्यु ?
किस्सा पुराना नहीं है
गांधी चौक पर आजकल
छोड़ कर दुख पीछे
जगदीश चतुर्वेदी
जूते जहाँ सिले जाते हैं सबके नाप के
जैसे छूलो आसमान
जीवन का केंद्र है प्रेम
जो, जितना, हँसता हूँ मैं
दृश्य में कौन ?
पटरी-बाजार
पुस्तकों में लिखा दर्द
पहाड़ पर प्रेम पहाड़ जैसा ही
बीच में मैं
भरोसे में भरोसा
भाषाई-अपव्यय
मैं एक अकेले द्वीप का कवि
मगर मैं मुक्त कहाँ स्मृतियों से ?
मृत्यु मेरी एक दिन
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