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					सुबह-सुबह सूरज के सम्मान मेंअपने भीतर तक झुका मैं
 और यह झुकना अंदर तक
 ऊँचा कर गया मुझे
 और महक उट्ठा मेरी आत्मा का पोर-पोर
 
 लोभ-लालच के बिना
 झुकना कितनी ताकत देता है हमें
 इस तरह झुकते हुए
 कितना ऊपर उठ जाते हैं हम
 अपनी सभी दिशाओं के साथ
 
 झुकना फल-फूल लदी टहनी की तरह
 जल भरी नदी की तरह झुकना
 खेतों को करते हुए आबाद
 
 वनस्पतियों से लदे
 अपने बड़ेपन में जिस तरह झुकते हैं पहाड़
 प्रेम में झुकती है जैसे स्त्री
 चलने के लिए झुकता है जैसे बच्चा
 
 सुंदर कथा के लिए जैसे भाषा झुकती है -
 बार-बार झुकने का ऐसा ही रियाज रखना
 अन्यायी के सामने तानाशाह के सामने झुकना नहीं
 झुकना कुछ ऐसे बड़प्पन में
 कि सोचते हुए हर हमेश ऊँचा लगे अपना शीश
 
 उदात्त अर्थ से झुकती है जैसे पंक्ति
 उसी तरह अपने झुकने का भी अर्थ होना चाहिए
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