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कविता

किसकी बाँह गहूँगा

मत्स्येंद्र शुक्ल


आओ नाविक
नौका लेकर आओ नाविक !
नदी उफनती धारा तेज
आगे पानी
चहुँदिसि पानी
जम कर बरस रहा है पानी
राह नहीं जानी-पहचानी
दृष्टि जहाँ-तक जाती
जल-ही-जल है
घर में पड़ी अकेली बूढ़ी नानी
कौन उसे देगा दाना-पानी
दिन डूबा तो कहाँ रहूँगा
सभी अपरिचित
किसकी बाँह गहूँगा
लोग हजारों यहाँ खड़े हैं
कितनों को तुम पार करोगे !


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