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कविता

सूत्रधार कहीं और

मत्स्येंद्र शुक्ल


सुबह सूरज का आलोक
प्रभा-मंडल कुछ और होता है -
फूल खिलते तितलियाँ मगन
चिड़ियाँ खेलतीं अरण्‍य-वीथिका में
संझा-वेला
वही किरण-जाल
सिमटता मंद-मंद पश्चिम आकाश में
डूबता-सा अदृश्‍य होता
- विस्‍तृत पटाक्षेप
बदल जाता पृथ्‍वी का सुसज्जित रंगमंच
अस्तिव का वर्तमान
एक-ही क्षण में कैसे टूटता-बिखरता
मनुष्‍य नहीं समझ पाता अघोरी साधना
घटना-चक्र का सूक्ष्‍म अभिनय
सूत्रधार कहीं और -
एक टाँग नाच रहा समाज संपूर्ण देश


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