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वो जानता - कहाँ सजाना मुझे
शब्द एक मैं उसके लिए -
नित नए भावों में सजा मुझे
कविता अपनी निखार रहा ।
तलाश कर रहा वह - एक नयी धुन
स्वर एक मैं, उसके लिए -
साज पर अपने तरंगों में सजा
कविता में प्राण नए फूँक रहा।
देखा है मैंने उसे - खींचते आड़ी तिरछी रेखाएँ
रंग एक मैं, उसके लिए -
तूली पर अपनी सजा
सपनों को आकार इंद्रधनुषी दे रहा।
लहरों सा बार बार भेजता मुझे
कभी सीपी देकर, तो कभी मोती
सब कुछ किनारे धर बेकल सा मैं
बार बार लौट - समा जाता उसमें।
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