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कविता

हँसोड़

कमल कुमार


रॉबिन!

तुमने दूसरों को हँसाया

तुम सबसे बड़े हँसोड़ थे

अद्भुत थी तुम्हारी संवेदना

और अभिनय कौशल /

धरती के गिर्द चक्कर लगाते यान तक

पसरी थी तुम्हारी गुडमार्निग

सरलता का शिखर था 'आस्कर'/

रॉबिन

तुम्हें कभी असफल भी होना चाहिए था

हार देती है जीवन में संतुलन और धैर्य/

औरत का किरदार निभाया था

उसके जीवन की विद्रूपताओं को नहीं जाना?

कई जीवन जीती है वह एक साथ

इसलिए हारती नहीं / तुम हार गए

इकहरा जीवन जिया था तुमने /

ग्लैमर की दुनिया की चकाचौंध मे खो गया

तुम्हारी भीतरी दुनिया का अँधेरा

बढ़ता आता अवसाद का धुआँ

क्या थी तुम्हारी चाहत?

नहीं पता किसी को।

अपने लिए रोए क्यों नहीं?

अपने लिए भी हँस लिए होता।

भीतर का 'अकेला' गवहर

कितना गहरा था तुम्हारा संताप /

उँड़ेल ही सारी खुशियाँ दूसरों के जीवन में

रिक्त हुआ तुम्हारा जीवन।

नशे में क्यों भरमा दिया

अपनी इच्छाओं को / क्यों नहीं जाना

अपने भीतर के रॉबिन को, विलियम?

लटका दी तन की खोखल खूँटी पर

अपने ही हाथों / छटपटाती हुई तुम्हारी आत्मा

मुक्त हुई क्या...?


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