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कविता

डिजिटल ब्वाय

कमल कुमार


उसके हाथ में स्मार्ट फोन है

टेबल पर लैपटॉप, आईपैड

दीवार पर हाई डैफिनेशन टीवी है /

वह व्यस्त है, इधर उधर कोई नहीं

वाई फाई पर बातें करता है

वाट्सअप पर दुनिया है

दुनिया उसकी मुट्ठी में है /

गुग्गल है, विकीपीडिया है

फेसबुक, ट्वीटर, ब्लॉग हैं

फेसबुक पर उसके हजार दोस्त हैं

आसपास कोई नहीं।

वीडियो चैंटिग, मोबाइल फोन है

उसके कानों में इयर फोन लगे हैं

बाप की बौखलाहट, असहाय

माँ की आवाज नहीं सुनता /

वह वीडियो गेम खेल रहा है

दनादन गोलियाँ मारता है

ताकि जीत सके सबको मार के

वह कार रेसिंग कर रहा है

उसे जीतना है, दॉय-बॉय नहीं देखना /

उसके शीशे के बाहर मौसम बदल रहे हैं

पक्षी सुबह होने की सूचना दे रहे हैं

बारिश शीशों पर जल तरंग बजा रही है

परवाह नहीं / ‘वर्चअल रिएलटी’ सच है

आँखों में थ्रीडी का चश्मा पहने

वह थ्रीडी की हारर फिल्म देख रहा है

निडर और बेपरवाह है

वह डिजिटल ब्वाय है...

 


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