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कविता

देखो आज मुझे मोहब्बत के हरकारे ने आवाज दी है

वंदना गुप्ता


सोचती हूँ कभी कभी

तुम ...जिसे मैंने देखा नहीं

और मैं ...जिसे तुमने भी नहीं देखा

और चाहत परवान चढ़ गई

एक नदी अपने ही आगोश में सिमट गई

मैंने सिर्फ ख्यालों में ही

मोहब्बत का नगर बसाया

न तुम कोई साया हो न मैं कोई रूह

शायद मेरी चाहत की कोई अनगढ़ी तस्वीर हो

अगर कभी मैं तुम्हारे शहर आई

तुम्हारी गली से गुजरी

तुम्हारे दर पर कुछ देर रुकी

और तुमने मुझे देखकर भी नहीं देखा

और मैं भी तुम्हारी देहरी से

रुका हुआ पल लिए

खाली ही लौट आई

बिना जाने एक दूजे को

तो क्या कभी जान पाएँगे हम इस सत्य को ?

मोहब्बत के लिए जिस्मों का होना

जरूरी तो नहीं होता ना

ये तुम भी जानते हो

और शायद मैं भी

तभी तो देखो

एक अनजान सफर पर निकल पड़ी हूँ

बिना जाने मंजिल का पता

अच्छा बताओ ...अगर हम

जिंदगी में कभी मिले

और तुम्हें पता चला

हरसिंगार कुछ देर ठहरा था तुम्हारी दहलीज पर

बिखेरी थी अपनी खुशबू तुम्हारी चौखट पर

क्या जी पाओगे उसके बाद ?

सोचते होंगे ...पागल है ...है ना

परछाइयों को शाल उढ़ा रही है

बिन बाती के दीप जला रही है

जब हम जानते नहीं एक दूजे को

फिर कैसे ख्वाब सजा रही है

है ना ...

मगर मोहब्बत के चश्मों को रोशनी की जरूरत नहीं होती

हकीकी मोहब्बत से ज्यादा पुख्ता तो अनदेखी मोहब्बत होती है

...अच्छा बताओ ...

कहीं मैंने तुम्हें अपना पता बता दिया

और तुमने मुझे अपना

और अचानक मैं सामने आ गई

तब क्या करोगे?

उफ ...इतनी खामोशी

अरे कुछ तो बोलो ...

जानती हूँ ...कुछ नहीं बोल पाओगे

सिर्फ और सिर्फ देखते रह जाओगे

और वक्त वहीँ थम जाएगा ...पूस की रात जैसे

...ठिठुरता सा ...मगर खत्म ना होता सा... है ना

ये मोहब्बत भी कितनी अजीब होती है ना

...हर साँस पर, हर कदम पर, हर शय पर बस इबादत सी होती है

देखा है कभी मोहब्बत की डाक को लौटते हुए बेसबब सा

चलो आज तुम्हें एक बोसा दे ही दूँ ...उधार समझ रख लेना

कभी याद आए तो ...तुम उस पर अपने अधर रख देना

मोहब्बत निहाल हो जाएगी

...हाँ हमारी अनजानी अनदेखी मोहब्बत की बेमानी कहानी अमर हो जाएगी

देखो आज मुझे मोहब्बत के हरकारे ने आवाज दी है

...ओह सजीली सतरंगी सावनी फुहार !

बरसातें यूँ भी हुआ करती हैं

...रेशमी अहसासों सी, लरजते जज्बातों सी

और देखो ना

कैसे गढ़ दिया मोहब्बत का मल्हारी शाहकार ...मेघों की दस्तक पर

मानो तुमने पुकारा हो ...आजा आजा आजा !

और मानो आह पर सिमट गई हो हर फुहार !


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