मुझे तापमान मापना नहीं आता
मत पूछना कौन सा?
यंत्रों से मापना तो
एक बच्चा भी जानता है
और मुझे मापना है
दुनिया का तापमान
उसके अंतस्थ का तापमान
जिसमें हर सेकेंड में
लाखों कीड़े कुलबुला रहे होते हैं
बेबसी के, बेजारी के
कभी समय की
तो कभी सत्ता की
तो कभी समाज की
तो कभी हालात की
और निरीह पशु सा उसका अंतस्थ
गर्म तवे पर लोटता, सिंकता, भुनता
अपने वजूद से
अपने होने से
अपनी बेबसियों से
कितना बेजार होता है
कि खुद को ही नहीं स्वीकार पाता
फिर कैसे मापा जा सकता है तापमान
जहाँ मापने के लिए यंत्र की नहीं
सूक्ष्म अवलोकन की जरूरत हो
क्यों है ये बेगानापन जिंदगी से
क्यों है ये अजनबियत खुद से
कारण तो बहुत मिलेंगे खोजेंगे तो
मगर उनके अर्थों में उतरने के लिए
गहरी डुबकी जरूरी है
ये मानव का
अवांछित तत्वों द्वारा
कभी राजनीतिकरण करना
तो कभी धार्मिक उन्माद से भयग्रस्त करना
और अपना परचम लहराना ही
शायद वो चक्रव्यूह है
जिसका भेदन वो कर नहीं पाता
फिर चाहे कोई देश हो
कोई परिस्थिति हो
कोई काल हो
बीज बोए हैं अपने अपने क्षेत्र के
सिद्धहस्त कठमुल्लाओं ने
और बाँट दिया इनसानियत को
कर दिए टुकड़े दिलों के
दिलों में उपजते प्रेम के
संसार मे फैले अमन के
नहीं चाहतीं कुछ उन्मादी
शरारती प्रवृत्तियाँ
इनसानियत और प्रेम के धर्म का प्रचार
फिर कैसे सिकेगी उनकी रोटी
कैसे होगा उनका प्रभुत्व कायम
चाहे इसके लिए
ईसा हो या सुकरात या ओशो
सूली पर चढ़ाना
जहर पिलाना
जन्मसिद्ध अधिकार है उनका
और उनके आधीन
उनको ताकती इनसानियत
औंधे मुँह पड़ी दो गज जमीन के नीचे
समाने को विवश होती है
फिर कैसे ना बेजारी का गीत जन्म लेगा
फिर कैसे ना बेबसी के काँटे हर पल चुभेंगे
और वो आक्रोशित, उपेक्षित, अर्धविक्षिप्त सा
जो कोई भी हो सकता है
इस दुनिया के किसी भी कोने से
क्यों ना लावा लिए हर पल खौलता मिलेगा
कैसे मापा जा सकता है उसका तापमान?
क्या बेबसी, लाचारियों को भी मापने की कोई प्रणाली विकसित हुई है
किसी भी प्रयोगशाला में
या बना है कोई यंत्र जो माप सके और बता सके
वो जो जिंदा दिखता है, साँस लेता, चलता फिरता
क्या सचमुच वो जिंदा है ?
जो हर पल मरता है इनसानियत की मौत पर
जो हर पल मरता है अमन की मौत पर
जो हर पल मरता है प्रेम सौहार्द की मौत पर
कहो मापा जा सकता है उसके अंतस्थ का तापमान?