कितना अच्छा लगता है
अपना मनचाहा होना
कविता, कहानी रच लेना
खूब पैसा होना
खूब लंबी-लंबी बातें
और नैतिक शिक्षा के विषयों पर
बड़ी-बड़ी बहसें करना,
समय बदला है इसलिए आदमी बदला है
यह तो तुम्हारा पुराना बहाना है
कभी-कभी बहुत घृणित हो जाते हो तुम
जो कभी सोचते नहीं
आखिरकार करते वही हो
अपने दृष्टिकोण की व्यापकता समझाकर
अपने बारे में ही सोचते हो
क्यों, क्या तुम यह नहीं सोचते
कि लोग तुम्हे खूब पढ़ें
तुम प्रसिद्ध हो जाओ
कविसम्मेलनों में वाह-वाही लूटो !
अपने आस-पास के वातावरण से
अलिप्तता नहीं पा सकते तुम
कोशिशें तो जीवनभर चलती रहेंगी
एक दृढ निश्चय जो तुमने किया
माना सच में नहीं स्वप्न में ही किया
उसे तो पूरा किया होता;
इधर मैं कई दिनों से देख रहा हूँ
कि तुम बहुत कुछ बदल गए हो
बहुत सोचते हो न तुम
लेकिन सिर्फ सोचने से क्या होता है
तुम सोचते होगे
कि फिर मैं क्या कर सकता हूँ
तुम्हें लोगों की हँसी का पात्र बनने का
डर नहीं होना चाहिए
तुम्हारे घर में तुम्हारी बीवी है
तुम्हारे बच्चे हैं
उनकी क्या अपेक्षाएँ हैं
कार्यक्षेत्र से भागना तुम्हारी वीरता नहीं है
और भोग में लिप्त रहना तुम्हे अच्छा नहीं लगता;
चूल्हे की दो मोटी रोटियाँ
और तनिक नमक के साथ
लोटा भर ठंडा पानी
तुम्हारे आगे रखा है
और तुम्हारे सामने एक कविता भी लिखी रखी है
जिसे तुमने आज तड़के ही लिखा था
कविता तुम्हें संतुष्ट करती है
और तुम कविता को
ऐसा तुमने कहा था,
रोटियाँ खा लेने के बाद
जब तुमने कविता पढ़ी
तो वह पहले से ज्यादा अच्छी लगी
तुमने उसे और सुधारा
कुछ विचार आए तुम्हारे दिमाग में
पनपे बहुत तेजी से
जो चूल्हे की राख के साथ
तुम्हारे पेट में चले गए थे
कविता का काम सिर्फ अनुभूति से नहीं चल सकता
उसकी पूर्णता विचारों से होती है
भूखे होने पर तुम कविता लिखते हो
खा चुकने पर उसे पढ़ते हो
कविता में जीते हो
कविता पे मरते हो
कितनी अच्छी बात है
परिवार भी जी रहा है
जीवन भी चल रहा है।
तुम्हारे मरने के बाद लोग कहते हैं -
"कैसा बीहड़ था
खूब पढ़ा, खूब लिखा
'निराला' का बाप निकला।"
पूरे जीवन भर तुमने अपनी कलम घिसी
किसी तरह जीवित रह अपनी कविता लिखी
अब शोधार्थी तुम्हारी कविताओं के अर्थ निकालते हैं
तुम्हारी भली-बुरी बातों को याद करते हैं
तुम्हारी अक्ल की दाद देते हैं
तब तुम ऊपर से देखते होगे अपनी कलम की धार
नीचे तुम्हारे खंडहर हो चुके मकान पर स्मारक बनेगा
होगा तुम्हारा सपना साकार
तुम्हारे बच्चे जो तुम्हे कोसते थे
जिंदगी भर अभावों में पले
वे भी हो जायेंगे मालामाल
तुम्हारे विचारों का कच्चा चिट्ठा छपेगा
तुम्हारी कृतियों के कॉपीराईट
और रॉयल्टी पर मचेगा बवाल,
चयनसमिति की बैठक में
मरणोपरांत पुरस्कार देने पर भी होगा विचार
तब विरोधी भी गाएँगे तुम्हारा प्रशस्तिगान
हर वर्ष याद किए जाओगे तुम
और तुम्हारा साहित्यिक अवदान
इधर भारत में बेरोजगारी बहुत बढ़ गई है
तुम ऊपर खूब लड्डू-पेड़े उड़ाओगे
तुम्हारी लार की बूँदें नीचे गिरकर स्वर्ण उपजाएँगी
हिंदी साहित्य का वह युग
तुम्हारे नाम से जाना जायेगा !
लोग कहते है -
मानवता का वह पुजारी
बड़ा सीधा था, सच्चा था
मर गया नहीं तो बड़ा अच्छा था !
तुमने पुनः जन्म लिया
लेकिन इसे तुम्हारा दुर्भाग्य कहें कि सौभाग्य
तुम्हे मिला कवि-परिवार फिर से
इस बार कविता का ककहरा सीखने की
तुम्हे आवश्यकता नहीं पड़ी
तुम्हारी शादी हो गई, बच्चे हो गए
अब तक कविता से तुम बहुत ऊब चुके थे
लेकिन कविता थी कि तुम्हारा पीछा ही न छोडती थी
कविता और कवि का कैसा नाता
तुम कुछ नया करने की झोंक में
सिद्धार्थ की तरह एक रात
घर से भाग खड़े हुए
पुरानी आदत जो थी -
और जाकर एक खेत में बिजूका बन गए
रात भर तुम सो न सके
सुबह जब पक्षियों ने तुम्हारी खोपड़ी पर
अपनी चोचें रगड़ी तो तुम्हें
अपनी लघुता का एहसास हुआ
तुम वहाँ से भागे और चौराहे पर खड़े बुत को हटाकर
उसकी जगह खड़े हो गए
यह इंतहा थी तुम्हारे सब्र की भी
एक पूरा साल बीत गया
किंतु तुम्हारा अनावरण करने
किसी मंत्री, अधिकारी की कार की धूल भी
तुम्हे उड़ती नजर नहीं आई
अब तुम और अधिक परेशान थे
सोचते हुए कि तुम्हे अब क्या करना होगा?
दो जन्म लेकर भी तुम कुछ उखाड़ न सके
भागकर वहाँ से तुम एक बहुत बड़े मंदिर में चले आए
ईश्वर की शरण में !
और एक रात चुपके से
ईश्वर की जगह खुद बैठ गए
तुम भूखे थे
लेकिन कुछ राहत में थे
क्या ये संभव था
अगले दिन पर्व था
भक्तों की बड़ी भारी भीड़
अपने सामने देख तुम खुश थे
लेकिन यहाँ पर भी तुम्हारे दुर्भाग्य ने
तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ा
पंडितों ने तुम्हे लंगड़ी मार दी
प्रसाद रूपी मिष्ठान तुम्हे सिर्फ सुँघाया गया
और तुम लार घुट्ट कर ही रह गए
पृष्ठभूमि में भगवान को तुमने हँसते देखा
तुम कुछ नहीं कर सकते थे
खड़े रहने के सिवा
उस रात तुम्हें भूखा ही रहना पड़ा
भरी भरकम मालाओं के बोझ तले
दबे रहे तुम
सूँघ-सूँघ कर पेट की आग शांत करने का व्यर्थ प्रयत्न !
लोग धीरे-धीरे चले गए
पुजारी ने तुम्हें बंद कर दिया
कहीं तुम भाग न जाओ
तब तुम्हारी आँखों से दो बूँदें ढुलकीं
कितना भद्दा मजाक यह
ईश्वर को तुम पर दया आई
और दरवाजा खुल गया
मौका पा तुम भागे
तुममें शक्ति शेष न थी
फिर भी तुम भागते रहे
अब कहाँ जाऊँ ?
यह सोचकर
थोड़ी देर बाद तुम्हारे कदम
उस सड़क की ओर मुड़ गए
अपने आप ही
जो तुम्हारे घर की ओर जाती थी
जहाँ तुम्हारी चिंताओं का हल हो सकता था
वह तुम्हारा अपना घर था
बाहर इतना भटकने के बाद
आखिरकार तुम अपने घर आ गए
जहाँ पत्नी तुम्हारा अब भी इंतजार कर रही थी
बच्चे अभी तक सो रहे थे
सूरज निकल आया था
चिड़ियाँ चहचहाने लगीं थीं
सुबह हो गई थी !!