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कहानी

भैरों क माई

विद्या विंदु सिंह


भैरो क माई क आज चित ठेकाने नाय रहा। महादेव के याद करिकै रोवत-रोवत मूँड़ पिराय
    लाग, आँसू थमबै न करै। ई आँसू महादेव के याद म रहा, अपने फूटे करम के लिए रहा और
    भैरो क फीस जमा करै क चिन्ता म रहा। सब समय क फेर  होय।
       फूलमती जब सत्रह बरिस क रही तबै बियाह होइगै रहा और अठारहवें बरिस मा भैरव    क जनम होइगै रहा। सासु नन्द फूलमती कै मुँह जोहै लागीं। फूलमती क जैसे नाव रहा वइसै गुलाब कै फूल यस सूरत रही, काम काज करै म वतनै फुर्त और चतुर। फूलमती क मर्द रेलवई म ड्राइवर रहिन। कमाऊ पूत क मेहरारू होय के नाते भी बड़ा ओछार दुलार रहा फूलमती कै।
       भैरव के जनम क खुसी म घर ढोलक और सोहर से गूँजिगै रहा। आसपास के सारे गाँवन म सोठौरा बँटा। मुला भगवान की मरजी के कौन जाने। फूलमती कै मरद रेलगाड़ी लइके जात रहे। छुट्टी मंजूर होइगै रही। आज सारा सर समान खरीद कै बक्सा तैयार करि कै धइ आय रहिन।
      ई गाड़ी कानपुर सवेरे पहुँचि जाये। नहाय धोय के समान लइकै बिहान घरे रवाना होइ जाब। महादेव की आँखिन म फूलमती क फूलबदन नाचि उठत रहा। लाल-लाल गोल मटोल लरिका लिहे फूलमती कैसन लागति होई। यही कल्पना म महादेव क मन उलझिगै रहा।
      बस यतने म सामने क सिगनल आँखि से ओझल होइगै, लाल सिगनल पार भै कि हरियर? सिगनल डाउन मैं रहा कि नाहीं? महादेव अचकचाय उठिन। जबले कुछ समझ में आवै सामने से तेजी से गाड़ी आवति देखाय परी।
      महादेव जब ले गाड़ी म ब्रेक लगावै क कोशिश करैं गाड़ी से गाड़ी आइके भिड़िगै।

हाहाकार मचिगै।
    तमाम यात्रियन के साथे महादेवौ कै इंतकाल होइगै।
        महादेव कै साथी बिहारी ई बज्रपात कै खबरि अउर ओनकै सर समान लइके जब आय
तौ फूलमती की दुनियाँ म अन्हियार होइगै। ससुर पहिलेहि भगवान काँ प्यारा होइगै रहिन।
सासु ई सदमा नाय बरदास कै पायीं। धीरे-धीरे घुलत-घुलत सालि भितरै म वनहूँ चलि बसीं।
         फूलमती बेटवा कै मुँह देखि कै जीयत रही।
सासु के मरतै देवर जेठ सब आँखि फेरि लिहिन। एक बेवा कै मदद करैके के कहै, ओकर जीयब दुसवार कै दिहिन। सबेरे उठतै फूलमती आपन मनहूस चेहरा छिपावै की खातिर लुकानि फिरै। केहू कै सामने परि जाय तौ सारा दिन कान छेदि उठै। जब बड़ा छोट सबकै सोपत लागि जाय, तब बचा खुचा महतारी बेटवा खाइ पी कै गुजर करैं। लरिकन के साथे खेलै जाय तौ केहू-केहू दुत्कारि कै भगाय देय। औ केहू-केहू ओकरे ऊपर तरस खाय के कहै -"बेचारा बिना बाप कै लरिका होय, जिन भगावा।"
       भैरों देही, दिमाग से कमजोर होय लाग। एक दिन फूलमती सपने म महादेव क देखि कै रोवै लागि। महादेव बोलिन ऐसे रोय के त तूँ पालि भइउ भैरो काँ? अरे पगली! हम तो तोहरे आत्मा म बसा हई। कहूँ दूर थोड़े गै हई। हर समय तोहरे साथ हई। उठ, रोउब बन्द
कर।
        फूलमती क आँखि खुलि गै। सामने शंकर पार्वती कै तसवीर लगी रही जौने म आधी देह पार्वती माई कै आधी संकर बाबा क। ऊ सोचै लागि महादेव पार्वती दुइ देंही म एकै हैं। इहै बाति त सपने म भैरों क बाप कहिगै। ओकरे चेहरे पै संकल्प चमकि गै।
         ऊ उठिकै खड़ी होइगै हम्मैं अपने बेटवा कै जिन्दगी माई-बाप दूनौ बनि कै सँवारे क परी। भैरो की उमिरि क छोट-छोट लरिका स्कूले जाय लागिन। भैरों क छठवाँ बरिसि चलत रहा।
ऊ भैरो क लइकै गाँव के स्कूल पहुँची। नावँ लिखाइ कै लौटी त आँखिन म मारे क सपना झूलत रहा। हमार भैरो पढ़ि लिखि कै बाबू साहेब बनि जाये। खूब साफ लकदक कपड़ा पहिरे। खूब ठोंक बजाय के बेटवा के बियाह करब। झिलमिल-झिलमिल रंग-बिरंगी सारी पहिरे पतोह आये। ओकरे पायल, पाँवजेब के रुनझुन से घर क कोना कोना गूँजि उठे।
        बिना बाप क लरिका है, कहूँ बिगरि न जाय। यही से हमहूँ क राति-दिन चौकन्ना रहे क परी कि ठीक से पढ़त बाय कि नाय।
        गाँव के स्कूल में ऊ भैरव क दाखिला कराय के लौटी रही त जेठ-जेठानी दुआरेन पै खड़े मिलि गै रहे।
        कहाँ गै रह्यू दुलहिन?'' फूलमती क जेठ तमकि कै बोलिन।
फूलमती घूँघट खींचि कै एक ओर मुँह कै के धीमें से बोलि उठीं- ''भैरो क स्कूल म नाँव लिखावै गै रहेन।''
        जेठानि ओठ टेढ़ि कै के बोलि उठीं - "घर म और केहू त रहा नाय, अकेले यनहीं रहीं दाखिला करावै जाय के लिए। कैसे सब जाने कि बेवा कै मदद करै वाला केहू नाय बा।"
         फूलमती चुप रही। काव बोलैं? कैसे जवाब दें कि पन्द्रह दिन से सबसे कहिके थकि गय रहेन कि भैरों का नॉव मदरसा म लिखाय द्या, मुला केहू नाय सुने रहा।
फूलमती कुछ बोली नाहीं, भीतर चली गयी।
भैरो मदरसा जाये लाग। फूलमती कुछ दिन पहुँचावै जाय और संझा क घरे लावै जाय। फिर भैरो अपुनै आवै जाय लाग। अब केहू के चिढ़ावै पै ऊ चिढ़ै नाय, केहू बेचारा कहिकै दया दिखावै त ओके बुरा लागै।
         फूलमती भैरो क नीन सोवैं, भैरों क नीन जागैं। भैरो क बुद्धि तेज होय लागि, मुला खिलाड़ी बहुत रहा।
        फीस बहुत मामूली रही, मुला फूलमती के लिए उहौ भारी परै। अपने लगे जौन रहा भर्ती करावै के समय वही म से खर्च होइ गै रहा।
        महादेव कै पेंसन अबहीं तक नाहीं मिली रही। हादसा म दोसी ड्राइवर रहा कि नाहीं एकर जाँच होत रही। महादेव कै विधवा के अधिकार
 नौकरी खातिर फूलमती अरजी लिखाय कै भेजि चुकी रहीं। मुला उहाँ से जवाब आय कि "मामले की जाँच हो रही है। अभी कुछ नहीं हो
सकता।"
फूलमती क धोती तार-तार होय गै रही, पर केहसे कहैं?
        अपना चाहे जइसे रहि लेंय, पर लरिका क कपड़ा-लत्ता, फीस क इन्तजाम त करही क रहा। फूलमती आपन गहना एक-एक कइके बेंचि कै खर्च चलावै लागीं।
        जब भैरव के लिए कुछ लावै त जेठ-देवर कै लरिका आइकै खड़ा होइ जायँ। अब कैसे भैरव कै अकेले देय, यही संकोच म थोड़ा बहुत सब पै खर्च करै क परै। जेठ-देवर कै लरिकै जब कुछ नवा पहिरै खायें त भैरव चुपचाप देखै। फूलमती कुछ न बोलैं। लेकिन देवरानी-जेठानी अपुनै से बोलि उठैं- "यनकै मामा पठइन हैं, या मौसी पठई हैं।"
        फूलमती के तो नइहरौ म केहू नाय रहा, अकेलि औलाद रहीं। पितियाउत भाय फूलमती की माई के डेराय-धमकाय कै ओकर खेत-घर लिखवाय लिहे रहा। ओसे पूरा गाँव डेरात रहा।
         सास-ससुर रहे नाहीं। जेठ-देवर खेती-बारी सँभारत रहें। फूलमती एक हिस्से क हिस्सेदार रही। पै दबी-दबी रहत रही। ओकर दुइ जून क रोटिउ भार रही सबके खातिर। घर मा भैंस लागत रही, लेकिन भैरो क दूध ना मिलै। कबौं बटोरिया क माठा बासी तिवासी मिलि जाय तौ भैरो ओठ चाटि-चाटि पीयै। फूलमती दूध की ओर भैरो क ललचियात नजर देखि कै कइयो बार जेठानी से कहिउ दिहिस- "दीदी! एक घूँट दूध भैरो क दै द्या।"
        जेठानी बोली- "लै जा पियावा न हम कौन अपुना खातिर धरे हई और सचमुच एक घूँट के स्थान पर दो घूँट दैके परछी लैके चली गयीं।उप्पर से सुनाय गयीं-अरे! इज्जत बरे दुइ बून घिउ खातिर जमाइ देइथै, नाहीं त का हमैं नाय नीक लागथै कि लरिकै परानी न पीयै खाँय दूध-दही।
        फूलमती कुछ बोली नाहीं आँखिन म उमड़त आँसु रोकै क कोसिस करै लागीं पर कहाँ मानत हैं ई आँसू। फूलमती जानथीं कि रात म सोवत कै अपने लरिकन औ आदमी काँ एक-एक गिलास दूध रोज पीयै क देथीं।
फीस क पैसा क जब नाय इंतजाम भै त फूलमती जेठानी से बोलीं कि भैरों क फीस जमा करै क बाय। जेठानी बोलीं- "का हम पैसा गाड़ि कै धरे हई?"
         फूलमती बात नाहीं बढ़ावै चाहत रहीं। बोली- ''दीदी! थोड़ा सा गेहूँ बनिया किहाँ दैके पैसा लै लेई। भैरो क फीस आज न जमा होई त नाँव कटि जाये। पाँच दिन से हम चिरौरी करि कै रोके हई।''
        यतना सुनतै जिठानी कै पारा गरम होइगै- "नाव लिखवावै से पहिले दीदी से पूछे रह्यू। मरि-मरिकै हमार पूत-भतार खेती करै और तू माई पूत बइठि कै खाबौ करा औ बनिया किहाँ बेचबौ करा। हे भगवान! अब यहि घर कै भगवानै मालिक हैं।"

बतकही सुनिकै जेठ आइ गये। "का भै मलकिन! काहें गोहार मचाये हयू?"
''अरे! हम काहे गोहारि मचाइब? लै जा! एक बोरी गेहूँ बेंचि कै भैरो क फीस जमा कराइ द्या। हमार लरिका त भँइस चरावै, खेत जोतै, हम नायँ पढ़ाइ पायन। अब भतीजे क पढ़ावा, ऊ तलूका तसीले, कलट्टर बने। तूँहूँ काँ बुढ़ापा म सिंहासन पै बइठाये।''
        फूलमती उहाँ से उठि कै चली आय। देर तक जेठ-जेठानी बकझक करत रहे। रात भर सोय ना पाइस भैरो क माई। जब से महादेव मरिन तबसे रोवतै त बीतत रहा। मुला एक ढाँढस रहत रहा कि देवर जेठ के साथ रहिके सबके सहारे से जिनगी कटि जाई। जवान बेवा नान्ह भरे क बच्चा क लैके कहाँ जाब?
         महादेव क साथी लोग आइके कहि गय रहे कि महादेव क जवन क्वार्टर मिला रहा वहीं म चलिके रहा। मुला फूलमती अपने ससुरारि वालन पै भरोसा कै के घर से नाय गयीं। परदेस म के सुख-दुख म साथ देई। महादेव क क्वार्टर दूसरे क मिलि गय। सब कहै कि फूलमती भौजी आइ गै होंती त केहू खाली न कराय पावत।
        वनही सबके कहे से फूलमती नौकरी क अरजी भेजि दिहे रहीं, मुला कुछ होय नाय पाइस। सब लोगे कहैं कि यतनी दूर से खाली कागद भेजि दिहे से थोड़े कुछ होत है। इहाँ भउजी रहतीं त दुसरे तिसरे दिन दफतर म जातीं त ओकर असर पड़त। रेलवे के मंत्री जी से फरियाद करतीं त जरूर नौकरी मिलि जात।
         सहर वाले ई कह्रैं औ गाँव वाले डेरवावैं-'' अरे महादेव बहू। इहाँ तोर खेत बारी बा, घर बा, कहाँ दर-दर ठोकर खाये जाबू?''
        फूलमती केकर सुनै, केकर मानै? यही उलझन माँ आठ बरिस बीति गय रहा। आज फीस कै इन्तजाम न होय पाये से औ रोज-रोज जेठ-जेठानी, देवर-देवरानी क ताना सुनत-सुनत ओकाँ आपन गलती समझ म आइ गय। अब ऊ केसे मदद माँगै?
        भोरहरे में आँखि लागि और तुरंतै चिरई क बोली सुनिकै आँखि खुलिगै। दर्द के मारे मूड़ फटा जात रहा। मुला उठे क त हइहै है। सारे घर कै झाड़ू बुहारू, गाय भैंस कै चारा पानी, सारि क सफाई, गोबर पाथब, ई सब काम फूलमती के जिम्में रहा। देवरानी के जिम्में रसोई क काम रहा। जेठानी मलिकाना सँभारे रहीं।
फूलमती उठिके खेते की ओर चलि पड़ीं। अँजोर होये से पहिले दिसा मैदान से लौटब जरूरी रहा। फिर कहूँ ठेकान न मिली।
        घर से निसरतै ठकुराइन अइया मिलि गयीं। फूलमती निहुरि के गोड़ धरिस त पूँछीं- ''कौन है रे?''

"हम हई अइया।"

"के महादेव बहू?"

"हाँ अइया!"

"अरे दुलहिन कैसे है रे! सुनेन कि भैरो क नाव लिखाइ दिहे हये?
        हाँ अइया लिखाय त दिहे हई। मुला अब तो नाव कटि जाये, जनात बाय।"

"काँहे रे?''
''फीस नाय जमा कै पावत हई।" कहिके फूलमती फफक पड़ी।
        ठकुराइन अइया से ऊ आपन सब दुख कहि लेत रही। आज सवेरे ओकरे मन माँ आय गै रहा कि आज अइया से मदद माँगब। काहें से कि जेठ-जेठानी के झगरा करै के डर से केहू उधार देय या मदद करै क हिम्मत नाय करत। अकेले ठकुराइन अइया क गाँव माँ सब अदब मानत रहा।
        ठकुराइन अइया आह भरिके बोलि परीं- "अरे महादेव बहू! हम जानित है रे कि तोहार देवरानि-जेठानि केतनी कँड़ाकुल हयीं। तोहार खेत-बारी सब जोतत-बोवत हइन औ तू रात दिन खटत हयू। तबौ तोहार दुइ जून कै रोटी वन्हें भारी लागत बाय। आज आयि जाये हमरे लगे। हम फीस कै पैसा तोके दै देब।"
        भैरो क फीस जमा कै के फूलमती फिर ठकुराइन अइया के इहाँ पहुँचि गय। सवेरे जल्दी से पैसा लैके चली गय रही।
अइया चाउर बीनति रहीं। बैठिके बीनय लाग। मुँह झुरान रहा।
         ठकुराइन बोलीं- "दुलहिन रहै दे जा गुड़ औ लइया निकारि लाव। पहिले खाइ के पानी पी ले, तब बैठ।"
        पानी पियाये के बाद ठकुराइन पूछै लागीं - "ऐसे कैसे काम चले दुलहिन? कुछ आगे क सोचै क परी न?''
''का करी अइया। अब तो सोचित है कि भैरो क लैके कानपुर चली गय होइत त के जानै काम मिलि गय होत। तब तो हाथे म चार ठौ पैसो रहा। अब तो हाथ खाली है।''
''त अब से चली जा न। हम खर्चा दै देब। कबौं होये त लौटाइ दिह्या। नाहीं त समझब कि गया ठाकुरद्वारा कै आयन।"
         फूलमती ओनके गोड़े पे गिरिके रोय परीं। अइया समझायीं, बुझायीं- ''पहिले घर वालन से कहा कि लै चलैं। ऐसेन वै सभे राजी होइ जाँय तब तौ कौनो बाति नाय। मुला बखेड़ा कइकै मना करैं, त अकेलै चली जा। उहाँ बिहारी त हइयै है।''
        बिहारी क पता फूलमती के लगे रहा। बिहारी बगल के गाँव के होयँ, जौन महादेव के मरै क खबरि और सर समान लैके आय रहिन।
        फूलमती के मुँह से कानपुर जाये के बाति सुनतै घर म हड़कम्प मचिगै। जेठानि बोलीं- ''केरावा भारा मानि ल्या न लागी, रेलवे क पास बा, पै उहाँ रहै क खरचा बरचा लागी। ऊ कहाँ से आये? जे लइके जाये ओकर त केरावा भारा लगबै करी। औ उहाँ गये से का फायदा? चिट्ठी त आय रही कि नौकरी ना मिलि सकत, जाँच चलत बा। और जवान जहान मेहरारू सहर म अकेले कैसे रहे? कहूँ ऊँच नीच होइगै तौ मुँह देखावै लायक बिरादरी म हमरे सब न रहि जाब। काव कही दुनियाँ कि बेवा क परवरिस नाय कै पाइस परिवार, तबै ऊ सहर म चली गै।''
फिर धीरे से एक बात और उठी देवर की ओर से कि भउजी जौ लिखि देयँ त ई नौकरी हमैं मिलि जाये। हम उनका पलके प बैठाय क राखब।
        फूलमती के घरे दुइ दिन मंथन चलत रहा।
        जेठ जी बोलिन- "दुलहिन हमरे लगे तौ रूपया पैसा से आजु कालि हाथ तंग बाय। तूँ अपने हिस्सा क खेत गिरवी रखै चाहा त केहू कै हाथ गोड़ जोड़ि कै इन्तजाम करी। धीरे-धीरे चुकाइ कै छोड़ाय लीन जाये।"
        फूलमती पहिलेन से ई उत्तर सुनै के लिए तैयार रही।
        दूसरे दिन ठकुराइन अइया से ऊ कुछ पैसा लै लिहिस। तय किहिस कि भैरो क साथे लइके भोर की गाड़ी से कानपुर के लिए रवाना होइ जाये।
        फूलमती क कुछ उम्मीद रही कि शायद चलत कै कुछ रूपया केहू पकड़ाय देय। मुला ऐसन कुछ नाय भै। उलटे पूछा गै- "कैसे खर्चा कै इन्तजाम करबू, जात त हयू?"
         फूलमती ऊपर आकास की ओर देखि कै मूड़ झुकाइ लिहिस औ धीरे-धीरे बाहर निकरि आय।
        गाँव कै कैयो औरतें मरद लड़िकै सब सड़क तक पहुँचावै खातिर साथे निकरि परिन।
        गाँव के एक जने क बैलगाड़ी कस्बे म सामान लादै जाति रही। सब मिलिके बैलगाड़ी रोकवाइन और फूलमती माई-पूत काँ गाड़ी पै चढ़ाइ दिहिन। गाड़ीवान स्टेसन तक पहुँचाइ दिहिस।

         फूलमती जब कानपुर पहुँचीं त स्टेशन से बिहारी क क्वार्टर पूछत-पूछत पैदरै पहुँचि गय। बिहारी बड़े आदर से वन्हैं अपने घर म रहै क ठौर दिहिन।
इतवार क फूलमती पहुँची रही। सोमवार से फूलमती क दौड़ भाग शुरू भै।
        फूलमती क ई देखि कै भारी अचरज भय कि ओकर अरजी एक मेज से केतनी मेज तक दौड़ लगावत रही। फूलमती काँ लागि कि ऊ चिट्ठी नाय आपन बहिन होय जौन हमार दुख दर्द लैके पूरे रेलवई के दफ्तर माँ घूमति बाय। ओकर मन कहिस कि ऊ चिट्ठी जौने क इहाँ अरजी कहि जात है, ओका लैके करेजे से लगाय लेय। मुला ऊ चिट्ठी अब देखै क नाय मिलि सकत। ऊ फाइल बनि गै बाय। औ एक मेज से दुसरी मेज, फिर तिसरी और आखिर माँ मंत्री जी के इहाँ पहुँचि गै।
        ऊ बिहारी के साथ मंत्री जी के पास मिलै गै। मंत्री जी जनता से मिलत रहे। उहौ जनता रही। पहुँचि गै हाथ जोरे। पाछे-पाछे भैरो महतारी क अँचरा क खूँट पकरि के चलत रहा।
        जबले लाइन म खड़े-खड़े फूलमती क नम्बर आवै भीड़ क एक रेला आइकै फूलमती क दूर ठेलि दिहिस। भैरो क गोड़ कुचलि गै रहा केहू के बूट से। ऊ बिलबिलाय के रोइ परा। फूलमती घबड़ाइ के एक किनारे खड़ी होइगै। मंत्री जी भीड़ से घिरि गै रहिन। औ यतने म टाइम खतम होइगै। मंत्री जी भीतरै-भीतर लौटि गइन। फूलमती ओनके बहिरे निकरै क इन्तजार करति रहीं।
        जब दुपहर होइ गै त भैरव क भूख पियास देखि के रोवाहिन होइगै। औ बहिरे आय के बिहारी क अगोरै लागि।
        एक घंटा बाद बिहारी आइन त भौजी क रोआँसी खड़ी देखिकै तसल्ली दिहिन - "कौनो बात नाय। बिहान फिरि आवै क परी।"
दूसरे दिन मंत्री जी अउबै ना किहिन।
        फूलमती रोज सवेरे तड़के तैयार होइ जायँ। बिहारी अपने दफ्तर जात कै राही माँ फूलमती काँ मंत्री के दफ्तर माँ उतारि देयँ।
पन्द्रहवें दिन मंत्री जी क निगाह फूलमती पे परी। ओकरे चेहरे पर ऐसन बेबसी रही, जवन ओकरे चनरमा ऐसन सुन्नर मुँह पै गरहन यस लागत रहा।
मंत्री जी अपने सेक्रेटरी से ओका बोलवाइन। ऊ अचकचाय उठी। ऊ तो सोचति रही कि आज फिर वापस जाये क परी। मंत्री जी के लिए लिखी हाथ क अर्जी          जवन रोज-रोज निकारत धरत मुड़ी-तुड़ी होइगै रही मंत्री जी के आगे बढ़ाइ दिहिस। मंत्री जी अपने सेक्रेटरी से कहिन-"इनकी फाइल मँगाकर आज मेरे पास भेज दीजिए।"
        बिहान भै फिर ऊ गै त सेक्रेटरी साहब बोलिन- "मंत्री जी आज फाइल पे आर्डर कर दिये हैं कि जल्दी से जाँच करके विधवा को न्याय दिया जाय।"
        फूलमती अब फिर बिहारी के साथे रेलवे दफ्तर रोज पता लगावै लागि। एक अफसर से दुसरे तक फाइल घूमति रही।
        जब केहू कहै कि फाइल चल रही है त फूलमती हँसि देय- "चलत त हम हई, फाइल बेचारी बिना हाथे गोड़े क कैसे चलि सकत है। लेकिन सचमुच एक महीना तक फाइल चलत रहि गै।"

          फूलमती क चिन्ता रही कि भैरो क पढ़ाई क नुकसान होत बाय। लेकिन बिहारी क दुलहिन औ उनके बच्चे समझावैं- "भैरो घर ही म एतना पढ़त बाय कि ओकै हरजा न होये।"
        और एक दिन फूलमती अपने साथ नौकरी क चिट्ठी लैके लौटी। ओहि दिन बिहारी क दुलहिन के गले लगिके खूब रोई।
''बहिन! तोहरे सब यतना किह्या कि आपन सगे सम्बन्धी नाय करि सकत।''
        फूलमती क नौकरी लागि गै। पढ़े लिखे नाय रही, यही से चपरासी क जगह मिली।
        बिहारी अर्जी देवाय दिहिन क्वार्टर के लिए। फिर वही अरजी, फाइल, मेजों पर दौड़ने लगी और दुइ महीना बाद क्वार्टर मिलि गै। तबले माई-पूत बिहारी के घरे मा रहिन।
        बिहारी औ महादेव क गहरी दोस्ती रही। दोस्त के परिवार के लिए यतना कइके बिहारी का बड़ा संतोष होत रहा। क्वार्टर पासै माँ मिलि गय रहा।
         फूलमती अपने सरकारी घर माँ गयी त लाग कि नैहरे से बिदा होति बा। घर साफ सफाई कैके तब गाँव जाये क खातिर छुट्टी लिहीं। भैरो क टी.सी.लाइके इहाँ नाव लिखावै क रहा। ठकुराइन अइया काँ और गाँव वालन काँ देखै क बड़ा मन होत रहा।
         फूलमती गाँव म अपने घरे पहुँची त कुछ देर तक केहू बोलबै नाय किहिस। लागै कि जैसे कोई पाप कइके लौटी होय, ऐसन निगाह से घर वाले देखत रहिन। गाँव के लोग आइन त हालि-चाल पूछे पै फूलमती आपनि नौकरी औ क्वार्टर मिलै क बात बताइस औ कहिस कि भैरो क खारजा (टी.सी.) लइके फिर जाये के बाय। यही खबर से घर वालन क चेहरा बदलि गै। मौन टूटि गै।
        देवरानी लोटा क पानी लैके पहुँचीं, "दीदी लावा गोड़ धोय देई।" फूलमती लोटा हाथ से लै लिहीं- "नाहीं दुलहिन। रहै द्या हम धोय लेब।"
        जेठानी चना-चबैना मँगवाईं- "पानी पी ल्या औ फिर नहाय धोय के खा पिया।"
        फूलमती क मन भरि आय। इहै घर होय जहाँ से बिना कुछ खाये पिये अपने बच्चा के साथे जब ऊ निकरी रही तब केहू न एक पइसा दिहे रहा और न खाये-पीये क पूछे रहा।
        महादेव जब रहिन तौ सहर जाये लागैं त उनके महतारी ठोकवा (मीठी पूड़ी), अचार, चबैना, गुड़, सतुवा, चिउरा, सांवा क खरबुज (उबले भुने साँवा को कूटकर निकाला हुआ चावल जो भिगोकर दूध से खाया जाता है।) कच्चा चना सब बाँन्हि देत रहीं। महादेव लाख मना करैं लेकिन माई कहाँ मानै वाली रहीं।
        वहि दिन जात कै फूलमती सोचति रही, पैसा नाय रहा त मानि लेइत है, मुला भैरव के खातिर दुइ दाना लइया औ गुड़ त दिया जाय सकत रहा।
        ठकुराइन अइया चुप्पै से चलत कै एक पोटली पकराइ दिहे रहीं। राही मा भैरो जब भुखान तब फूलमती पोटली खोलिस। तब सोहारी, भाजी और गुड़ देखिके फूलमती रोइ परी रही। भैरो माई क रोवत देखि के रोवे क कारन पूछे रहा, तब फूलमती लरिका क जिउ न दुखाये, यही कारन कुछ नाय बताये रहीं। मुला भैरव अब समझे लाग रहा प्यार औ दुतकार क भाषा।
        आज कितने दिन के बाद बड़की माई मूड़े पे हाथ फेरीं त भैरो कँ वहमन प्यार नाहीं देखाय, जानि परा।
        बिहारी काका भैरो क दुनिया क ऊँच-नीच रोज समझावत रहिन औ इहौ कहे रहिन- ''भैरो! तू मेहनत से पढ़ा बेटा! तोहार माई तोहरे लिए केतना तकलीफ उठावत हयीं। एकर खयाल रखा। बिहारी काका इहौ कहे रहे कि तूँ आपन भला बुरा सोचै क दिमाग रखा। तोहार माई बहुत सीधी भोली हयीं। आज काल्हि दुनिया बड़ी चगड़ होइ गै बाय। तू अपने ताऊ से माँगि के कुछ गोहूँ चाउर लिहे आया। तोहरे माई क तनखाह त मिले पहली तारीख कै तबले खर्चा चलावै क परी। तू लरिका हया तोहरै कहब ठीक रहे। तोहरे माई संकोच के मारे कुछ बोलि ना पइहैं।''
''अबले हमरे घरे रह्या तबले तोहरी माई संकोच के मारे मरी जाति रहीं। अब तौ दूसरे क्वार्टर माँ नोन से लै के लकरी तक कै इन्तजाम करै क परी। हम देबौ करब तौ तोहार माई बोझा मानिके एहसान तरे दबत रहिहै। यहि लिए तूहैं समझावत हयी।''
        दाना पानी कइके भैरो अपने ताऊ के लगे दलान माँ चला गै। ताऊ हालि-चालि पूछिन- ''कहाँ रहत रह्या? केकरे इहाँ खात रह्या? माई तोहार दफ्तर केकरे साथे जाति रहीं? काम हेरे जाति रहीं तौ तूहें लैके जाति रहीं कि नाय? केतनी देर माँ लौटति रहीं। दिने माँ लौटि आवै कि राति होइ जाति रही?''
        भैरो ताऊ के कुलि सवाल कै जवाब सच-सच देत चला गै।
        ताऊ पूछिन- ''तोहरे माई कै दिन कै छुट्टी लैके आय हयीं?''
ऊ बोला- ''परसों जाये क है। आज इतवार है। बिहान सोमवार क हमार स्कूल खुले त टी.सी. लैके जाय क बाय।''
        यतना कहिकै भैरो चुप होइ गै। कैसे कही ताऊ से रासन वाली बात? फिर सोचिस कि अबहिनै कहि देई, नाहीं त फिर पता नाहीं कब बैठिहैं।
''दादा! हमरे सब काँ थोड़ा रासन अबकी दै द्या। और कुछ रूपया दै द्या। माई बड़ी परेसानी म बाय। बिहारी काका कै काफी रूपया कै करजदार होइ गै हईं।''
        अब ताऊ कै भौंहन मा बल परि गै। बोलि परिन- "तोहरे बिहारी काका हमरे सबसे ज्यादा सगा होइ गै हइन ना? ऊ तौ नौकरिहा होंय, हमरे सब कहाँ पाई रूपया? बैल यस जाँगर पेरिके अनाज उपजाइत है। सबकै पेट भरी कि बेंचि के पैसा बनई?"
        भैरो चुपचाप ताऊ कै मुँह देखत रहि गै। फिर जैसे ओकरे भीतर लावा फूटै लागि होय। मुला थोड़ा सोचि के बोला- "दादा! हमरे सब इहाँ रहित त खाइत ना। उहाँ रहब त खाये भरै क न देबा त काव खाब?"
        अब ओकर ताऊ गुर्राय परिन- "ई अपनी माई से जाइके पूछा। जवन बिहारी के चक्कर माँ कुल कै मान-मर्यादा भूलिके मनाही किहौ पै चली गयीं। बेवा कै ई लच्छन हमरे खानदान माँ न कबौं रहा, न हम बर्दास्त करब।''
        अब भैरव के भीतरे फूटत लावा भड़भड़ाय परा। ऊ उठिके खड़ा होइगै- ''दादा हमरी माई के कुछ कहबा त ठीक न होई। हमार माई देवी होय देवी।''
        भैरो क बात सुनतै ताऊ उठिकै खड़ा होइ गये औ जोर-जोर से बोलै लागे। वाह बेटा! वाह। बित्ता भर कै अपुना हया औ जीभ चार हाथे कै बाय। देवी होय देवी! इहै देविन कै लच्छन होय कि पराये मरद के साथ राति भये लै घूमैं। अरे हमार भाय मरिगै, हमार त बाँहि कटिगै। कबौं ऊँची आवाज म हमसे नाय बोला रहा। औ तूँ...
         जोर-जोर आवाज सुनिकै सब औरतें बहिरे दलानि की ओर दौड़ीं। केसे झगरा होय लाग? फूलमती भी ड्योढ़ी पै खड़ी होइगै। जेठ जी केकरे ऊपर यतना जोर से चिल्लात हइन? सामने त खाली भैरो खड़ा बाय। भैरो क लाल भभूका आँखि औ चेहरा देखिके ऊ चौंकि परीं। भैरो काव कहि दिहिस यस कि जेठ जी बिगरि परे हैं।
        भैरो धीरे-धीरे महतारी के लगे आय औ ओकर अँगुरी पकरि के बोला- "माई! चला इहाँ से ई समुझि लिह्या कि इहाँ हमरे सबके लिए कौनों जगह नाय बाय। हम पढ़ाई छोड़ि देब माई! हम मजूरी करब औ आपन तोहार पेट भरब।"
     फूलमती क लाग कि भैरव जवान होइगै। जउन भैरव काल्हि तक हमरी गोदी माँ लुरियाय-लुरियाय खेलत रहा, मचलत रहा, ऊ आज हमैं सहारा देत बा।
    माता के गौरव बोध से ऊ भरि उठी औ महतारी पूत घर से निसरि परे।पीछे घर औ गाँव के लोग मनावत रहिगै।



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हिंदी समय में विद्या विंदु सिंह की रचनाएँ