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कविता

ये तो नहीं कि ग़म नहीं

फ़िराक़ गोरखपुरी


ये तो नहीं कि ग़म नहीं
हाँ! मेरी आँख नम नहीं

तुम भी तो तुम नहीं हो आज
हम भी तो आज हम नहीं

नश्शा संभाले है मुझे
बहके हुए क़दम नहीं

क़ादिरे दोजहॉं है गरे
इश्कि के दम में दम नहीं

मौत अगरचे मौत है
मौत से ज़ीस्त कम नहीं

अब न खुशी की है खुशी
ग़म का भी अब तो ग़म नहीं

मेरी नशिस्त है ज़मीं
खुल्द नहीं हरम नहीं

क़ीमत-ए-हुस्न दो जहाँ
कोई बड़ी रक़म नहीं

अहदे वफ़ा है हुस्ने -यार
क़ौल नहीं क़सम नही

लेते हैं मोल दो जहाँ
दाम नहीं दिरम नहीं

सौम-ओ-सलात से 'फ़िराक़ '
मेरे गुनाह कम नहीं


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