जो आहट थी आसपास
वही मेरी परंपरा थी
और इसे ही मैं अपनी वसीयत में लिख रहा था
मेरी कविता ही मेरी वसीयत है
जहाँ मेरी आहटों को दाना-पानी मिलते रहने की बातें दर्ज हैं
मेरी इस वसीयत में उन सभी के नाम दर्ज हुए समझे जाएँ
जिनके कारण मैं वसीयत लिखने के लायक बना।
('ओरहन और अन्य कविताएँ' संग्रह से)